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________________ Pakk + जैन- गौरव स्मृतियाँ * 冬冬冬冬冬冬冬冬冬社 KK .. भारत के प्राचीन नगरों में इस प्रकार के अवशेष प्राप्त हैं जो इनकी समृद्धि को सूचित करते हैं । कई इसप्रकार के लेख मौजूद हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि राजपूत नरेशों ने जैनियों को बहुत ऊँ चास्थान प्रदान किया था। इन क्षत्रिय राजाओं ने जैनियों को कई विशेषाधिकार प्रदान किये जिनका लाभ वे अभी तक उठा रहे हैं । इससे यह प्रतीत होता है कि राजस्थान में उनका कितना महत्व था ।" 1 'उक्त कथन से यह भलीभाँति सिद्ध हो जाता है कि राजस्थान में जैन जाति का अत्यन्त गौरवमय स्थान रहा है और आजकल भी है । इस जाति ने अपना आचार विचार और रहन-सहन का प्रभाव राजस्थान की समस्त जनता पर डाला है । आजकल जैनजाति की अधिक जनसंख्या राजस्थान. मध्यभारत और गुजरात- काठियावाड़ में ही है, भारत के अन्य प्रांतों की अपेक्षाइन प्रांतों में हिंसा धर्म का विशेष प्रभाव पड़ा है इसका कारण जैनजाति ही है। आइये, अब हम राजस्थान के इतिहास प्रसिद्ध कतिपय जैन वीरों के जीवन की संक्षिप्त झाँकी का अवलोकन करें: : 4 राजस्थान की मुकुट मणि, स्वतंत्रता देवी की आराध्य भूमि, भारत सिरमौर और वीरप्रसवा मेवाड़ भूमि के इतिहास पर दृष्टिपात कीजिये । भारतवर्ष में मेवाड़ ही ऐसा प्रदेश रहा है जो मातृभूमि मेवाड़ राज्य के जैनवीर की आजादी के लिये सर्वस्व होम कर भी आन और बान परं सदा दृढ़ रहा । इसके पीछे देश व स्वामी के लिए सर्वस्व न्योछावर कर देने वाले वीर दीवान और सेनापतियों के रूप में दानवीर भामाशाह, आशासाह, संघवी दयालदास, दीवान मेहता अगरचन्दजी आदि का महान बल रहा है। हिन्दु- कुलसूर्य राणा प्रताप के साथ दानवीर भामाशाह का नाम शरीर और आत्मा की तरह सदा सम्बद्ध रहेगा । सचसुच जैनजाति के महापुरुप देश के लिये आत्मा रूप थे । मेवाड़ राज्य के इतिहास की पंक्ति २ जैन देशभक्तों की अपूर्व स्वामी भक्ति, देशप्रेम और वीरता से अनुरंजित है । मेहता जालसी: जिस समय समस्त मेवाड़ अलाउद्दीन खिलजी के श्राधीन हो चुका, उसकी ओर से चित्तौड़ का शासन सोनगरा मालदेव करता था, मेवाड़
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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