SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 316
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ><><>> जैन गौरव-स्मृतियां *>> श्रीमाली जैन राणिग के पुत्र आम देव ( अंवड़, आम्रभट्ट ) क कुमारपाल ने सौराष्ट्र का दण्डनायक बनाया था। इसने स ० १२२२ में गिरनार पर चढ़ने के लिए सोपान ( पगथिये ) बनवाये | 7 इस प्रकार कुमारपाल के समय में जैनधर्म की चतुर्मुखी उन्नति हुई | जैननरेशों, जैनमंत्रियों और जैनयोद्धाओं ने भारत के भव्य इतिहास का निर्माण किया है, यह उक्त विवरण से सर्वथा स्पष्ट हो जाता है । सोलङ्की कुल की एक शाखा 'बाघेला' थी । इसका प्रथम राजा अर्णोराज हुआ। लवणप्रसाद, वीरधवल, वीसलदेव, अर्जुनदेव, सांरगदेव और कर्णदेव इस वंश के राजा थे । इनकी जैनधर्म महामंत्रीश्वर वस्तुपाल से सहानुभूति थी। इनमें वीरधवल बड़ा पराक्रमी राजा तेजपाल था। यह घोलका का राजा था। वीरधवल और वीसलदेव मालवा के राजा मुंज और भोज की तरह अपनी सभा में पंडितों को रखते थे । इन्हीं वीरधीवल के मंत्री वस्तुपाल थे । तेजपाल इनके कनिष्ठ भ्राता थे । इस भ्रातृयुगल की कीर्तिकौमुदी से गुजरात का और साथ ही साथ जैनधर्म का मुख समुज्ज्वल हुआ है । गुजरात के ये दो वाणि बन्धु अपने सद्गुणों और सत्कृत्यों से जितने यशोभागी हुए उतना यश प्राप्त करनेवाले पुरुष भारत के ऐतिहासिक मध्यकाल में बहुत ही विरल दृष्टिगोचर होते हैं । I 1 इनके पिता का नाम अश्वराज और माता का नाम कुमारदेवी* था । अश्वराज, सिद्धराज जयसिंह के मंत्री सोम के पुत्र थे । कुमारदेवी *ऐसा कहा जाता है कि कुमारदेवी आभु मंत्री की बालविधवा कन्या थी । किसी समय पाटन में भट्टारक हरिभद्र सूरि के व्याख्यान में कुमारदेवी आई । उसके सामने आचार्य वारवार देखने लगे । इससे मंत्री अवराज का ध्यान उसकी ओर गया । मंत्री ने एकान्त में आचार्य को उस स्त्री के सामने देखने का कारण आग्रह पूर्वक पूछा । तब आचार्य ने कहा कि इष्टदेवता ने हमें कहा कि इस स्त्री की कुति से सूर्य-चन्द्र के सम्मन दो तेजस्वी सन्तान शासन प्रभावक होने वाली हैं। इससे मैं तत्सम्बन्धी सामुद्रिक लक्षण देख रहा था । इस तत्व को जानकर दूरदर्शी मंत्री अश्वराज ने शासन हित के लिए तत्कालीन समाज-नियम के विरुद्ध भी किसी तरह उसके साथ विवाह कर लिया और उससे 'वस्तुपाल' 'तेजपाल' का जन्म हुआ समकालीन किसी भी ग्रन्थ में इस घटना का उल्लेख नहीं है । kkkkkkkk (३४०) WhoKook
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy