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________________ *जैन-गौरव स्मृतियां See नामक ७२ जिनाल यवाला विशाल मन्दिर वनवाया । इनके अतिरिक्त उसने सैकड़ों विहार और मन्दिर बनवाये जिनमें तारंगा पर्वत पर बँधायाहुआ अजितनाथ जी का मंदिर. विशेषतः उल्लेखनीय है । आबू पर भी उसने महावीर का मंदिर बनवाया था । वह प्रतिदिन श्रद्धालु श्रावक की तरह जिनपूजा करता था और अष्टन्हिका महोत्सव धूमधाम से मनाता था । कुमारपाल अपनी प्रजा का पुत्रवत् पालन करता था । उसने अनाथ और असमर्थ व्यक्तियों के लिये एक सत्रागार बंधवाया था जहाँ सबके भोजन वस्त्रादि की समुचित व्यवस्- होती थी। एक पौषधशाला बनावाई थी, साहित्य की उन्नति के लिये कुमारपाल ने विपुल द्रव्यराशि व्यय से इक्कीस ज्ञान-भाण्डारों की स्थापना की और राजकीय पुस्तकालय के लिये जैन आगमग्रन्थों और हेमचन्द्र विरचित योग शास्त्र-वीतराग स्तव आदि की स्वानरों में प्रतिलिपी करवाई थी । ऐसा कुमारपाल बन्ध में उल्लेख है। तात्पर्य यह है कि कुमारपाल का जीवन एक आर्दश राजा का जीवन था । टॉड साहब ने लिखा है---"कुमारपाल ने जैनधर्म का अति उत्कृष्टता से पालन किया और समस्त गुजरात को उसने एक आदर्श जैनराज्य बनाया।" संबन १२३, में ८० वर्ष की अवस्था में परमार्हत कुमारपाल का स्वर्गवास हो गया । चुमारपाल को परमाहत बनाने का श्रेय कलिकालसर्वाज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य को है। यह पहले लिखा जा चुका है कि कुमारपाल ने उदयन को महामात्य का पद दिया । उदयन का ज्येष्टपुत्र वाग्भट ( बाहड़ ) योद्धा भी था और साहित्य निपुण भी । उदयन के बाद वाग्भट को ही कुमारपाल ने महामात्य बनाया था। इस वाग्भट्ट ने अपने पिता उदयन की इच्छानुसार शत्रु जय के गुस्य काष्टमय मन्दिर को पाका पत्थर का बनवाया और पाटन से नंघ ले जाकर प्राचार्य हेमचन्द्र के हाथ से प्रतिष्टा कराई : इनमें एक करोड साट लाग्य रुपये खर्च हुए। उदयन में दूसरे पुत्र दण्डनायक अम्बड़ ने भौंच में शकुनिया विहार (मुनि सुत्रतस्वामी का चैत्य ) नामक प्राचीन तीर्थ का उलार कर भव्य जैनमन्दिर बनवाया ।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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