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________________ * जैन-गौरव-स्मृतियाँ ह ट याभु नाम के मंत्री की कन्या थी । अश्वराज और कुमारदेवी ने ज्योतिरिन्द्र के समान इन तेजस्वी वीर नररत्नों को जन्म देकर जैनधर्म की महती प्रभावना की । इन दो पोरवाड़ जाति के जैन वणिकों ने अपने पुरुपार्थ के द्वारा अतिविपुल द्रव्यराशि उपार्जित की और पानी की तरह उसे शुभ कार्यों में लगा दी। वस्तुपाल और तेजपाल दोनों जहाँ महामात्य, सेनापति, अर्थव्यवस्थापक थे वहीं प्रचण्ड योद्धा, महादानी और धार्मिक भी थे । वस्तुपाल में यह और भी विशेषता थी कि वह स्वयं कवि, लेखक और विद्वान् था, तथा विद्वानों को मुंज और भोजराजा की तरह आश्रय देनेवाला भी था। 'वस्तुपाल' 'तेजपाल' की राजनीति कुशलता के कारण वीरधवल के राज्य का अभ्युदय हुआ । उसके राज्य का सारा ऐश्वर्य महामात्य वस्तुपाल के पास था और राज्य का समस्त मुद्रा व्यापार तेजपाल के हाथ में था। इनके मंत्रित्वकाल में इन्होंने लाटदेश के अधीन रहे हुए खम्भात बन्दर को स्वाधीन बनाया। दक्षिण के राजा सिंह ने वीरधवल के राज्य पर आक्रमण करने के लिये सेना भजी वह भरोच तक आ पहुँची, अतः उसका सामना करने के लिये लागवयप्रसाद और वीरधवल दोनों पिता-पुत्र सेना लेकर पहुँचे । उधर वे संग्राम में लगे हुए थे इधर भडोंच के राजा शंख ने खम्भात दूत भेजकर वस्तुपाल को कलाया कि 'वीरधवल की इस लड़ाई में विजय होना कठिन है। खम्भात तो हमारी कुलक्रमागत सम्पत्ति है अतः यह हमें सौंपकर शेषपर तुम स्वतंत्रतापूर्वक राज्य करो। वीरधवल ने तो तुम्हें एक शहर दिया जबकि मैं तुम्हें देश का प्रधान बना दूंगा। मेरे पराक्रम के सामने तुम वणिक टिक भी नहीं सकोगे" । वस्तुपाल ने उसके संदेश का मुंहतोड़ जवाब देते हए यह भी कहलाया कि--मैं पणिक है परन्तु तलवार रूपी तराज़ से रण सपी बाजार में कैसे काम लेना यह में भलीभांति जानता हूँ । शत्रुओं के मस्तकरूपी माल खरीदता हूँ और बदले में उन्हें स्वर्ग देता है। जो शंख सिन्धुराज का सगा पुत्र हो तो उसे रणमैदान में आने के लिये कहना"। इसके बाद दोनों में प्रचण्ड युद्ध हुश्रा | स्वयं वस्तुपाल शस्त्रधारण कर र मैदान में गया । शव वस्तुपाल को अजेय मानकर युद्ध के मैदान से भाग गया ।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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