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________________ " >> जैन-गौरव-स्मृतियां व्यय एवं धौव्य साथ साथ पाये जाएँ और जिनके बिना जगत् की स्थि में स्थिरता न हो । एक चीज में उत्पत्ति एवं विनाश के साथ धौव्यत्व कैसे र सकता है ? यह पूछा जा सकता । शास्त्रकारों ने "अर्पितानर्पिता सिद्ध ( विविध दृष्टियों की अपेक्षा से ) के द्वारा इस प्रश्न का उत्तर दिया है। कटक-कुण्डल का दृष्टान्तं इस विषय में सर्वगत है । द्रव्य का यह लक्षय उपर्युक्त छहों द्रव्यों में पाया जाता है। ये सब द्रव्य नित्य हैं, मौलिकरु में स्थित (अपरिवर्तित ) हैं । अमूर्त द्रव्यों में मूर्त्त द्रव्य की उपपत्तिय नहीं पायी जाती हैं । ★ : द्रव्य का उपर्युक्त लक्षण आधुनिक विज्ञान के आधार पर सिद्ध है। विज्ञान के शक्ति स्थिति ( Conservation of Energy ) वस्तु - अविनाशित्व Law of Indestructibility of matter तथा शक्ति रुपान्तर Trans for mation of energy आदि सिद्धान्त यह स्पष्ट बतलाते हैं कि नाशवान पदर्थों में भी धौव्यत्व ( Permanance ) रहता है। डेमोक्राइटस का यह अभिमत ही इस विषय में काफी है: --: :: Nothing can never become something; Somethig can never become anything" व मूत्त द्रव्य - पुद्गल "पूरणगलनान्वर्थसंज्ञत्वात् पुद्गलाः " जो भेद, संघात अथवा उभय के कारण एक दूसरे के साथ योग या मिश्रण बनावें या विघटन पैदा करें, वे पुद्गल कहलाते हैं । पुद्गल मूर्त हैं । इसकी पहिचान रूप, रस, गंध एवं स्पर्श से होती है । प्रत्येक पदार्थ में, जो पौगलिक कहलाते हैं, ये चारों एक साथ पाये जाते हैं । रूपादि से हम पदार्थों के गुणों (Properties) का परिचय प्राप्त करते हैं । जैसे स्पर्श से भार, कठिनत्व, उष्णता आदि रूप से कृष्ण, नील इत्यादि । पाँच रूप, ( कृष्ण, नील, पीत, लात, श्वेत, ) पाँच रस ( आम्ल, मधुर, तिल, कटु और कंपाय ), दो गंध ( सुगंध और दुर्गन्ध ) एवं आठ स्पर्श ( मृदु-कठिन- गुरु-लघु-शीतोपण-स्निग्ध
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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