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________________ Meet जैन-गौरव-स्मृतियां औ रूक्ष ) इस प्रकार पृदुगल के २० गुण हैं । ये मूल गुण भी प्रत्येक संख्यात, असंख्यात एवं अनन्त होते हैं । प्रत्येक में किसी न किसीप्रकार का रूप, रस, गंध, स्पर्श ( या मिश्रण भी ) पाया जाता है। जगत् के समस्त दृश्य पदार्थ पुद्गल ही तो हैं । शरीर, वचन, मन, प्राण एवं श्वासोच्छ वास पुद्गल के. कार्य हैं । जीव को सुख-दुःख, जीवन एवं मरण का अनुभव पुद्गल (कर्म) के कारण ही होता है । ये पुद्गल द्रव्य है क्योंकि इनमें 'उत्पाद-व्यव-ध्रौव्य". पाया जाता है । कटक कुण्डल के दृष्टान्त का उल्लेख हो चुका है । . . ये पुद्गल दस रूपों में प्रत्यक्ष हैं:-(१) शब्द (२) बंध (३) सौक्षम्य (४) स्थौल्य (५) संस्थान (६) भेद (७) तम (८) छाया . (१)आतप और ( १० ) उद्योत । मूलरूप में पुद्गल के दो भेद हैं-अणु . और स्कन्ध | अणु, पदार्थों का सबसे सूक्ष्म तथा अविभागी अंश है जो. इन्द्रियातीत है। उसकी उत्पत्ति मात्र भेद से होती है । जैसे चाक को तोड़ते जाने पर इसका छोटे से छोटा टुकड़ा जो दिख न सके अणुः कहलायेगा। यह सब पदार्थों का मूल है, अणुओं के मिलन तथा भेद से स्कन्ध बनते हैं। अणु तथा स्कन्धों से ही जगत् के समस्त पदार्थ बने हैं । तात्पर्य यह है कि । जगत् अणुसंमुदाय मात्र है। पुद्गल के इस निरूपण को यदि हम वैज्ञानिक मान्यताओं के आधार पर कहते हैं तो हमें अपने आचार्यों की महत्ता का अनुभव होता है। पुद्गल के विषय में तो खासकर इनकी सूक्ष्म विवेचन शक्ति का पता' लगता है, जो पूर्णतः वैज्ञानिक थी। पुद्गल के दो अर्थ हैं:-(१)पूरणात्मक . '( Combinatio al) और गलनात्मक Disintegrations.l) आज का विज्ञान भी पदार्थों में परस्पर सम्मिलन तथा बाह्य या आभ्यन्सर कारणों द्वारा विघटन की प्रवृत्ति सिद्ध करता है। कहना तो यह चाहिए कि तत्वों की इन्हीं प्रकृतियों के कारण विज्ञान ने आज समस्त जगत् को चकित कर दिया है। परमाणु बम, रेडियो-सक्रियता तथा विघटन ( Dissoci.tion, elect . . rols tic etc) के सिद्धान्त Valenty (बंधकता) की परिभाषा स्पष्ट ही पदार्थों के उपयुक्त दोनों गुणों को साधित करती है। रेडियो-सक्रियता अंतरंग तथा बाह्य विघटन कारणों के फलस्वरू होती है युरेनियम का एक परमाणु तीन तरह की किरणें (a B.x. Rass) हमेशा प्रस्फुटित करता। NO.
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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