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________________ >> जैन-गौरव-स्मृतियां ★ रूप भी सत् हैं। इन दो विरोधी प्रतीत होने वाले परन्तु वस्तुतः अविरोधी -तत्त्वों के सम्मिलन से ही वस्तु का यथार्थ स्वरूप बनता है । अतः जैनदर्शन यह कहता है कि पदार्थ के बाह्य आकार के उत्पन्न और नष्ट होने पर भी - उसके परिवर्तित होने पर भी उसका मूल स्वरूप कभी नहीं बदलता है । जैसे अलंकारों में परिवर्तन होने पर भी सोना वही बना रहता है इसी तरह पर्यायों के बदलने पर भी द्रव्य वही बना रहता है । यही बात युक्तियुक्त प्रतीत होती है | अतः जैनदर्शन ने द्रव्य का जो स्वरूप बताया है वह तर्क और अनुभव सिद्ध हैं । द्रव्य, परिणमन शील है यह ऊपर बता दिया गया है । द्रव्य में परिणाम पैदा करने की जो शक्ति है उसे गुण कहते हैं । तथा गुण जन्य परिणाम को पर्याय कहा जाता है । द्रव्य में अनन्त गुण हैं जो उससे कभी अलग नहीं हो सकते। गुण द्रव्य से अलग नहीं होते और द्रव्य गुण से रहित कदापि नहीं होता । दोनों परस्पर अविभाज्य हैं । प्रत्येक गुण की भिन्न २ समयवर्त्ती त्रिकाल स्पर्शी पर्याय अनन्त हैं । द्रव्य और गुण कभी नष्ट नहीं होते और नवीन उत्पन्न भी नहीं होते अतः वह अनादि अनन्त हैं परन्तु पर्याय प्रतिक्षण उत्पन्न होती हैं और नष्ट होती हैं अतः वह अनित्य हैं । उदाहरण के लिए पुद्गल द्रव्य को लीजिए:- उसमें रूप, रस आदि अनन्त गुण हैं और नीला पीला खट्टा-मीठा आदि अनन्त पर्याय हैं । पुद्गल द्रव्य से रूप, रस आदि कभी अलग होने वाले नहीं हैं और रूप, रस आदि भी पुद्गल द्रव्य के विना नहीं पाये जा सकते हैं । पुद्गल द्रव्य में रूप, रस आदि सदा रहते हैं परन्तु नीलपीत आदि उसकी पर्याय प्रतिक्षण बदलती रहती है । इसी तरह जीवक्रय में चेतना आदि गुण, तथा ज्ञान दर्शन रूप विविध उपयोगमय पर्याय हैं । जीवद्रव्य से चेतना गुण कभी अलग नह रह सकता है परन्तु उपयोग रूप पर्याय सदा बदलती हैं । इस विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि जैनदर्शन की द्रव्य की परिभाषा युक्ति संगत है । - द्रव्यों में से चेतना वाला द्रव्य एक ही जीव ही है। शेष पांचों द्रव्य अचेतन जड़ हैं । जीवद्रव्य उपयोग लक्षण वाला, ज्ञाता, कर्त्ता, भोक्ता, और अमूर्त हैं । वह स्वदेह परिमाण है । वह अनन्त हैं । : (२३४)XXXXXXXX
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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