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________________ Stars जैनगौरव स्मृतियां काट ... . . : "अहिंसा के निरपवाद सिद्धांत के अन्वेषक : महर्षि स्वयं महान योद्धा थे । जब उन्होंने आयुध-बल की तुच्छता का भलिभांति अनुभव कर लिया, जब उन्होंने मानव-स्वभाव को भलीभांति जान लिया तब उन्होंने हिंसामय जगत् के सन्मुख अहिंसा का सिद्धांत उपस्थित किया । आत्मा सारे विश्व जीत सकती है. । आत्मा का सबसे बड़ा शत्रु आत्मा ही है। उसे जीत लिया कि सारां विश्वः जीत लेने जितना सामर्थ्य आ जाता है, यह उन महर्षियों ने बताया इस लिये वे ही इसका पालन कर सकते हैं, ऐसा नहीं हैं। उन्होंने बताया कि बालक के लिए भी नियम तो यही है। वह भी इसका पालन कर सकता है । इस नियम का पालन केवल साधु सन्यासी ही करते हैं यह बात तो नहीं है । थोड़े-बहुत अंश में तो सब इसका पालन करते हैं। जो थोड़े अंश में भी पाला जा सकता है वह सर्वांश में भी पाला जा सकता है ।" .. '... गांधीजी के उक्त कथन से अहिंसा की व्यवहारिकता सिद्ध होजाती है। ... अहिंसा का अवलम्बन लेने वाला आत्म बलिष्ट होता है। कायर व्यक्ति अहिंसा का अवलम्बन लेता है तो वह अहिंसा को लज्जित करता है। अहिंसा का अर्थ कायरता नहीं है । अहिंसा तो सच्ची वीरता है । गांधीजी ने लिखा है कि हम शांति, क्षमा को दुर्बल का शस्त्र गिन कर उस शस्त्र की कीमत को नहीं परखते हैं और उसे लज्जितं करते हैं। यह तो मोहर को अठन्नी गिनकर काम में लेने के समान मूर्खता हुई। शान्ति व अहिसा वीर का शस्त्र है । वीर के हाथ में ही यह शोभा देता है । यह वीर का भूपण है। जो लोग अहिंसा को कायरता बढ़ाने वाली कहते हैं वे उसके मर्म को नहीं समझते हैं। जिस समय भारत में अहिंसक धर्म के उपासक सम्राट थे। उस समय भारत उन्नति के शिखर पर आरूढ था । उस समय उसमें वह शक्ति थी कि कोई उसपर आक्रमण नहीं कर सकता था । सम्राट चन्द्रगुप्त और अशोक के शासन काल भारतीय इतिहास का स्वर्ण-काल है। भारत की अवनति का कारण अहिंसा नहीं है अपितु अनैक्य है । अहिंसा ने तो भारत को गौरव प्रदान किया है। अहिंसा ने भारत को पुनः स्वतन्त्र वनोया है । एक विशाल साम्राज्य से निःशस्त्र मुकाविला कर के और स्वतन्त्रता प्राप्त करके भारत ने अहिंसा का चमत्कार दुनियाँ को बता दिया है।..:.: . .
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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