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________________ अध्ययन ५ उ. १ गा. १९-गोचर्या मलमूत्रव्युत्सर्जनविधिः ४०१ स्न्यादीनामप्रतीतिकारणत्वात, तादृशव्यवहारानौचित्याच, तस्मादावश्यकतायां तत्स्वामिनं पृष्ट्वैवोद्घाटयेदिति भावः ॥१८॥ मूलम्-गोयरग्गपविट्ठो य, वच्च-मुत्तं न धारए। ओगासं फासुअं नच्चा, अणुन्नविअ वोसिरे ॥१९॥ छाया-गोचराग्रप्रवष्टिश्च, वर्गों-मूत्रं न धारयेत् । ___ अवकाशं प्रामुकं ज्ञात्वा, अनुज्ञाप्य व्युत्सृजेत् ॥१९॥ सान्वयार्थः-गोयरग्गपविट्ठो गोचरीमें गया हुआ मुनि वच्च-मुत्तं मल और मूत्रको नधारएनहीं रोके अर्थात् मल-मूत्र-की वाधा उपस्थित होनेपर उनके वेगका अवरोध न करे, (किन्तु) फासुयंमाशुक-जीवरहित ओगासं-स्थण्डिलभूमिको नच्चा-जानकर अणुन्नविय-गृहस्थकी आज्ञा लेकर वोसिरे मल-मूत्रका त्याग करे ॥१९॥ टीका-'गोयरग्ग०' इत्यादि । पूर्व निवृत्तवाधोऽपि गोचराग्रप्रविष्टो मुनिः पुनस्तद्वाधायामुपस्थितायां वर्ची-मूत्र=मलं प्रस्रावं च न-धारयेत्-नावरुन्ध्यात् । यत उक्तम् "जओ मुत्तनिरोहे चक्खूबघाओ भवति, वच्चनिरोहे जीविओवधाओ करती हुई स्त्री आदिको अप्रतीतिका कारण है, तथा लोकव्यवहारसे भी अनुचित है, अतः आवश्यकता होने पर उसके स्वामीको पूछ करके ही किवाड़ परदा आदि खोलना चाहिए ॥१८॥ 'गोयरग्ग०' इत्यादि । गोचरी जानेके पहले लघुनीत और बड़ीनीतकी शंकाको निवृत्त करलेने पर भी यदि गोचरीके लिए चले जाने पर पुनः लघुशंका आदि की शंका होजायतोमल-मूत्र को रोके नहीं, क्योंकि कहा है__ "मूत्रके निरोध करने से नेत्रोंको हानि होती है और मलका અપ્રતીતિનું કારણ બને છે, તથા લેકવ્યવહારથી પણ અનુચિત છે તેથી જરૂર પડતા તેના સ્વામીને પૂછી લઈને જ કમાડ પડદે આદિ ખેલવાં જોઈએ. (૧૮) गोयरग्ग० त्या शायरी 41 पौड धुनीति भने पनातिनी શકાને નિવૃત્ત કરવા છતા પણ જે ગેચરી માટે નીકળી ગયા પછી ફરી લઘુશકા આદિની શકા થઈ જાય તે મળ-મૂત્રને રોકવા નહિ, કારણ કે કહ્યું છે કે “મૂત્રને નિરોધ કરવાથી નેત્રને હાની થાય છે અને મળને નિરોધ કરવાથી
SR No.010497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages623
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size28 MB
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