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________________ पिंडेपणा [२१] जिस स्थान पर बीज अथवा फूल फैले हों अथवा जो स्थान हाल ही में लीपे पोते जाने के कारण गीला या भीगा हो तो ऐसे घर में भिक्षु गोचरी के निमित्त न जाय । टिप्पणी- वनस्पति कायिक अथवा जल कायिक जीवों को उससे थोडा सा भी कष्ट न हो इसका साधु को सदैव ध्यान रखना चाहिये । [२२] संयमी मुनि गृहस्थ के घर में बालक, बकरा, कुत्ता अथवा गाय का बच्चा श्रादि हो तो उसको लांघ कर अथवा उसको एक तरफ हटा कर घर में प्रवेश न करे । टिप्पणी- लांघने में गिर पडने का और एक तरफ हटाने में कुत्ते आदि का क्रुद्ध होकर काट खाने या चोट पहुंचाने का डर है 1 [२३] गृहस्थ के घर भिक्षार्थ गया हुआ साधु (भिक्षा किंवा किसी व्यक्ति या वस्तु पर) श्रासक्तिपूर्वक दृष्टि निक्षेप न करे, इधर उधर दृष्टि न दौडावे और न किसी की तरफ आंखें फाड २ कर ही देखे । यदि कदाचित् उस घर में किसी मनुष्य को न देखे तो वहां से चुपचाप कुछ भी बोले विना पीछे लौट आवे । टिप्पणी - वारंवार किसी की तरफ देखनेसे, अथवा इधर उधर दृष्टि दौडानेसे गृहस्थको साधु पर शंका करने का कारण मिल सकता है इसलिये एसा न करना चाहिये । [२४] गोचरी के निमित्त गया हुधा साधु, जिस कुल का जैसा आचार हो वहां तक की परिमित भूमिमें ही गमन करे । नियत सीमा के बाहर गमन न करे । टिप्पणी-जैन मुनियों के लिये यद्यपि उच्च आचारविचार के कुलों में भिक्षा मांगने की छूट है फिर भी भिन्न २ कुल के जाति एवं धर्मगत . रीतिरिवाजों के अनुसार ही, उनके घर की नियत सीमा में रहकर भिक्षु ·
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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