SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - दशवकालिक सूत्र टिप्पणी-दरवाजा बंद कर के गृहस्थ अपनी रहत्य क्रिया करते हों तो इस तरह से अचानक किवाड खोलने से उनको दुःख अथवा क्रोध हो आने की संभावना ह । ऐसे दोषों का निवारण करने के लिये ही ऐसा न करने का विधान किया गया है। यदि कदाचित दरवाजा खुला भी हो तो भी ऊपर से विवेक रखना उचित है। यह एक ऐसा नियम है जो मुनि अथवा गृहस्थ सभी को एकसरखा लागू होता है। यदि इस नियन का सर्वत्र पालन किया जाय तो 'आशा विना अंदर आने को मना है' के साइनबोर्ड दरवाजे पर न लगाने पड़े। [१६] मलमूत्र की शंका हो तो उससे निवृत्त होकर ही मुनि गोचरी के लिये गमन करे। कदाचित् रास्तेमें आकसिक शंका लगे तो मल या मूत्र को विसर्जन करने योग्य निर्जीव जगह देखकर उसके मालिक की आज्ञा लेकर बाधा का निवारण करे। टिप्पणी-मल एवं मूत्र की शंकाएं मार्ग में न हों उसके लिये पहिले हो से सावधान रहना चाहिये और यदि आकस्मिक हो तो उस वाधा को रोकने का प्रयत्न नहीं करना चाहिये क्योंकि कुदरती हाजतों को रोकने से शरीरमें रोग होने का डर है। इस लिये ऐसा न कर किसी योग्य त्यानमें उन क्रियाओं को करना ही ठीक है। [२०] जिस घर का नीचा दरवाजा हो, जिस घरमें अंधकार व्याप्त हो रहा हो अथवा जिसमें नीचा तहखाना हो उस घरमें मुनि मिक्षार्थ न जाय क्योंकि अंधकार व्याप्त रहने से वहां पर चलने फिरने वाले त्रस जीव दिखाई न देने से उनकी विराधना हो जाने का डर है। टिप्पणी-यह भोजन अपने संयममें बाधा डालनेवाला है किंवा निर्दोष है इस बात का २ अंधेरे में कुछ भी पता नहीं चल सकता। फिर वहां पर गिर पडने, छोटे बडे जन्तु की विराधना हो जाने आदि अनेक दोष हो जाने का डर भी है।
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy