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________________ दशवैकालिक सूत्र ५६ 1 शुद्ध भिक्षा प्राप्त करे । मर्यादा से आगे रसोई गृहमें कदाचित दाता को 'दुःख' हो, इसलिये साधु वैसा न करे । : [२५] जहां खडे रहने से स्नानांगार अथवा मल विसर्जन गृह (संडास अथवा टट्टी) दिखाई देते हों तो उस स्थान को छोडकर अन्य स्थान पर जाय और शुद्ध स्थान को देखकर विचक्षण साधु भिक्षा के लिये वहां खडा हो । · टिप्पणी- उक्त प्रकार के स्थानों में खडे रहने से स्नानागार में नहाते हुए किंवा संडासमें जाते हुए गृहस्थ को मुनिका वहां खड़ा रहना असभ्यतापूर्ण दिखाई देने और उससे मुनि की अवगणना होने की संभावना है । , i [२६] सब इन्द्रियों से समाधिवंत मुनि पानी या मिट्टी लाने के मार्ग को तथा जहां लीलोतरी (हरियाली सचित वस्तु) फैली हो उस स्थान को छोडकर प्रासुक स्थानमें जाकर भिक्षार्थं खडा हो । टिप्पणी-वैसे स्थान में खडे रहने से सूक्ष्म जीवों की हिंसा होने की संभावना है । . [२७] पूर्वोक्त मर्यादित स्थान में खडे हुए साधु को गृहस्थ आहार पानी लाकर व्होरावे तो उसमें से जो वस्तु श्रकल्पनीय :' , (प्रा) भिक्षा हो उसको सुन्दर होने पर भी वह न ले, इतना ही नहीं उसके ग्रहण करने की इच्छा तक भी न करे और केवल कल्पनीय अन्न जल को ही ग्रहण करे । · टिप्पणी - श्री दर्शवैकालिक सूत्र के तीसरे अध्ययन में तथा श्री उत्तराध्ययन सूत्र के २४ वें अध्ययन में वर्णित दूषणरहित शुद्ध भिक्षा हीं साधु के लिये कल्पनीय कही है। I 1 1 [२८] गृहस्थ स्त्री. दान के लिये यदि भिक्षा लाते हुए रास्ते में .. अन्न फैलाती हुई लावे तो · भिक्षु भिक्षा देनेवाली उस बाई " " L
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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