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________________ - - - दशवकालिक सूत्र पद्यविभाग [साधक की प्राथमिक साधना से लगाकर अन्तिम सिद्धि तक के संपूर्ण विकासक्रम को प्रत्येक भूमिका का क्रमशः यहां वर्णन करते हैं। [5] अयत्ना ले (उपयोग रहित होकर) चलनेवाला आदमी प्राणिभूत (तरह २ के जीवों) की हिंसा करता है और इस कारण वह जिल फापकने का बंध करता है उस कर्म का कहना फल स्वयं उसको ही भोगना पडता है। टिप्पणी- उपयोग के यों तो कई एक अर्थ हैं और उसका बटा बाक भय है फिर भी यहां पर प्रसंगानुसार सता र्थ 'जागति रखना विशेष उचित है। जागृति अथवा सावधानता के दिन पदि ननु जाने लगे तो उनके द्वारा नाना तरह के जोवों को सिपना होजने को संभावना है, गड्डे ऋदि में पैर पड जने का डर है। इसी तरह वपर को दुःख देनेवाली अनेक बातें हो सकती हैं। प्रत्येक क्रिया के विषयमें ऐसा ही सनम्ना चहिये। [२] अयला से खडा होनेवाला मनुष्य खडे होते समय प्राणिभूत की हिंसा करता है और उससे वह जिल पापकर्म का बंध करता है उस कर्म का कहना फल स्वयं उसको ही भोगना पड़ता है। [३] अयत्नापूर्वक बैठनेवाला मनुष्य बैठते हुए अनेक जीवों की हिंसा करता है और इससे वह जिस पापकर्म का बंध करता है उस कर्म का कडुना फल स्वयं उससे ही भोगना पडता है।
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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