SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पडूं जीवनिका २१ (अग्निकायिक जीव के सिवाय और कोई दूसरी ) जाति का शस्त्र न परिणामे (लगे) तबतक श्रग्नि सचित्त कहलाती है किन्तु अन्य जातीय जीवों के साथ संपर्क होते ही उनका नाश हो जाता है और उनके जीवरहित हो जाने से अनि 'चित्त ' कहलाती है । [४] वायु कायमें भी पृथक् २ अनेक जीव होते है और जबतक उनका अन्य जातीय जीव के साथ संपर्क न हो तबतक वह सचित रहती हैं किन्तु वैसा संपर्क होते ही वह श्रचित्त हो जानी है । द्वारा हवा करने से वायुकायिक का ८ 3 शस्त्र कहा गया है। पांचों प्रकार के स्थावर ' टिप्पणी- पंखा (वीजना) आदि , जीवों का नाश होता है इसलिये उसे वायु खास ध्यान देने की बात यह है कि जीवों को पुनः पुनः 'काय' कहा गया है, जैसे पृथ्वीकाय, जलकाय, अग्निकाय वायुकाय वनस्पतिकाय । काय } शब्द का वार २ अर्थ ' समूह ' होता है । उक्त पांचों प्रकारों के साथ " काय ' शब्द का । व्यवहार कर आचार्यों ने इस गूढार्थ की तरफ निर्देश किया है कि ये जीव सदैव समूह रूप मेंसंख्या में असंख्य - ही रहा करते हैं । ये असंख्य जीव एक ही साथ एक ही शरीर में जन्म धारण करते हैं और एक ही साथ मृत्यु को भी प्राप्त होते हैं । ये पांचों प्रकार के जीव, जहां कहीं भी, जिस किसी भी रूपमें रहेंगे वहां संख्या में अनेक हो होंगे । वनस्पतिकायिक जीव को छोडकर पृथ्वीकायिक आदि एक जीव का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं हो सकता । वनस्पति कायके जीव दो प्रकार के होते हैं (१) प्रत्येक और ( २ ) साधारण । प्रत्येक वनस्पति में शरीरका मालिक एक ही जीव होता है किंतु साधारण वनस्पति के शरीर में असंख्य जीव होते हैं । द्वींद्रियादि जीवों में यह बात नहीं है । वे प्रत्येक जीव अपने शरीरका स्वतंत्र मालिक है उसके जीवके आधार पर रहने वाला और कोई दूसरा त्रस जीव नहीं होता । 1 इन
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy