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________________ २४ दशवकालिक सूत्र जीव को जबतक अग्निकायिक इत्यादि दूसरी (पृथ्वीकायिक के सिवाय और कोई दूसरी) जाति का शस्त्र न परिणमे (लगे) तवतक पृथ्वी सचित्त (जीवसहित) कहलाती है । पृथ्वीकायिक जीवों का नाश अग्निकायिक श्रादि जुदी जातिके जीवों द्वारा हो जाता है। [२] पानीकी एक बूंदमें असंख्य (संख्या का वह बडा परिमाण जो अंकों द्वारा प्रकट न किया जा सके) पृथक् २ जीव होते हैं । उनको जबतक अग्निकायिक इत्यादि दूसरी (जलकायिक जीव के सिवाय और कोई दूसरी) जाति का शस्त्र न परिणमे (लगे) तबतक जल सचित्त कहलाता है किन्तु अन्य जातीय जीवों के साथ संपर्क होते ही उनका नाश हो जाता है और कुछ काल तक वे अचित्त (जीवरहित) ही रहते हैं। टिप्पणी-शास्त्रमें एक जाति के जीवों को दूसरी जाति के जीवों के लिये 'शहा ' कहा है । अर्थात् जिसतरह शस्त्र द्वारा मनुष्यों का नाश होता है उसी तरह परस्पर विरोधी स्वभाव के जीव एक दूसरे का ‘शस्त्र' के समान नाश करते है जैसे अग्निकायिक जीव जलकायिक जीवों के लिये शस्त्र ( अर्थात् नाशक ) हैं उसी तरह जलमायिक जीव अनिकायिक जीवों के लिये भी शस्त्र हैं । इसी दृष्टिसे ग्रंथ में ' नाश करने की क्रिया' का उल्लेख न कर स्वयं उनको गुणधर्मानुरूप 'शरू' कहा है । आधुनिक विज्ञानने यह सिद्ध कर दिया है कि जल की एक बूंद में बहुतसे सूक्ष्म जन्तु होते हैं । जो वात पहिले केवल अनुमान अथवा कल्पना मानी जाती थी वह आज सूक्ष्मदर्शक यंत्र (Microscope ) द्वारा प्रत्यक्ष सत्य सिद्ध हो चुकी है। [३] अग्नि की एक छोटी सी चिनगारी में अग्निकायिक असंख्य जीव रहते हैं। उनको जबतक जलकायिक इत्यादि दूसरी
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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