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________________ इस ग्रन्थ का कर्ता कौन ? नामकरण के विषय में इतना ऊहापोह करने के गद, दशव- . कालिक सूत्र का कर्ता कौन है ? यह प्रश्न स्वभावतः उत्पन्न होता है । कहने की आवश्यकता नहीं है कि यह प्रश्न मी प्रथम प्रश्न की अपेक्षा कम महत्वपूर्ण एवं रोचक नहीं है । अाश्चर्य की बात तो यह है कि लगभग २००० वर्षों से ये ग्रन्थ अस्तित्व में है और सैंकडों वर्षों तक उत्तर एवं दक्षिण भारत में राज्य करनेवाले राजा-महाराजाओं के मान्य जैन धर्म के सिद्धांतो के प्ररूपक ग्रन्थों के सामान्य पद पर . ये अघिठित रहे हैं, फिर भी आजतक इन ग्रन्थों के मूल कर्ता के विषय में केवल परंपराओं के सिवाय, श्रृंखलाबद्ध ऐतिहासिक प्रमागा .. कुछ भी नहीं है । और न किसो जैनाचार्यने इस विषय में कुछ विशेष ऐतिहासिक प्रकाश डालने की चेष्टा हो की है। ऐसा माना जाता है कि अन्य आगमों का संग्रह श्री सुधर्मा स्वामीने किया । इन संग्रहो में उनने स्वयं भगवान महावीर द्वारा ' कथित शब्दों का संग्रह किया था और उन उपदेशों का अपने पट्ट शिष्य जंबु स्वामी को सुनाया था । अनेक ग्रन्थों पर सुयं में आउसं तेण भगवया एवमक्खाय' यह वाक्य मिलता है जिसका अर्थ यह है कि "हे भद्र ! उन भगवान (महावीर) ने ऐसा कहा था ।" इसी तरह के वाक्यप्रयोग दशवैकालिक सूत्र में भी यत्रतत्र हुए हैं इस पर से ऐसी मान्यता चली आती है कि इस . ग्रन्थ का संकलन भी सुधर्मा स्वामीने किया है और उनने ये उपदेश जंबू स्वामी को सुनाये थे। किन्तु यह मान्यता अभी तक सर्वमान्य नहीं हो सकी अर्थात् इस ग्रन्थ के रचयिता के संबंध के मतभेद मौजुद हैं। (२२)
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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