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________________ दशवकालिक सूत्र [१२] जो स्मशान जैसे स्थानों में विधियुक्त प्रतिमा (एक प्रकार की उच्च कोटि की तपश्चर्या की क्रिया) अंगीकार कर भयकारी शब्दों को सुनकर भी जो नहीं डरता तथा विविध सद्गुणों एवं तपश्चरणमें संलग्न होकर देहभान को भी भूल जाता है वही आदर्श भितु है। टिप्पणी-मिक्षुओं की प्रतिमाओं के १२ प्रकार है। उनमें तपश्चर्या की भिन्न २ क्रियाएं व्रत नियनपूर्वक करनी पड़ती हैं। इनका सविस्तर वर्णन जानने के लिये उत्तराध्ययन सूत्रका ३१ वां अध्यायन तथा दशाश्रुत स्कंध देखो। [१३] तथा ऐसे स्थानमें जो मुनि देहसूज़ से मुक्त रहकर अनेक वार कठोर वचनों, प्रहारों अथवा दंड किंवा शस्त्र से मारे जाने अथवा बींधे जाने पर भी पृथ्वीके समान अडग स्थिर बना रहता है, कौतूहल से जो सदा अलिप्त रहता है और वास नाओंसे रहित रहता है वही आदर्श साधु है । . . [१४] जो मुनि अपने शरीर द्वारा तमाम परिपहों (आकस्मिक संकटो) को समभावपूर्वक सहनकर जन्म-मरणों को ही महा भयके स्थान .जानकर संयम तथा तप द्वारा जन्म-मरणरूपी संसार से अपनी अत्मा को उबार लेता है वही आदर्श मरणों को ही मी संयम तथा कार से अपनी [१५] जो मुनि सूत्र तथा उसके रहस्य को जानकर हाथ, पैर, वाणी, तथा इन्द्रियों का यथार्थ संयम रखता है ( अर्थात् • सन्मार्गमें विवेकपूर्वक लगाता है), अध्यात्मरससे ही जो मस्त रहता है और अपनी आत्मा को समाधिमें लगाता है वही सच्चा साधु है।
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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