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________________ . भितु नाम टिप्पणी-शानका फल संयम और त्याग है इसलिये सच्चे शानी का प्रथम चिह संयम है। संयमो स्वार्थी प्रवृत्तियों से दूर हो जाता है और आत्मभाव में ही लक्लीन रहता है। [१६] जो मुनि संयम के उपकरणों में तथा भोजन आदि अनासक्त रहता है, अज्ञात घरों से परिमित भिक्षा प्राप्तकर संयमी जीवन का निर्वाह करता है, चारित्रमें बाधक दोपों से दूर रहता है तथा लेन-देन, खरीद-वेचना तथा संचय आदि असंयमी व्यापारों से विरक्त रहता है और जो सर्व प्रकारकी आसक्तियों को छोड़ देता है वही श्रादर्श भितु है। टिप्पणी-यपि पदार्थों का त्याग करना भी बडी कठिन वात है फिर भी उसके त्याग कर देने मात्रसे ही त्यागधर्म की समाप्ति नहीं हो जाती । पदार्थ त्याग के साथ ही साथ उनको भोगने की अतृप्त हार्दिक वासनाओं का भी त्याग करना इसोको सच्चा त्याग कहते हैं। [१७] जो मुनि लोलुपता से रहित होकर किसी भी प्रकारके रसोंमें आसक्त नहीं होता, भिक्षाचरीमें जो परिमित भोजन ही लेता है, भोगी जीवन विताने की वासना से सर्वथा रहित होकर अपना सत्कार, पूजन किंवा भौतिक सुख की पर्वाह नहीं : करता, और जो निरभिमानी तथा स्थिर आत्मावाला होता है वही श्रादर्श मुनि है। [१८] जो किसी भी दूसरे मनुष्य को (दुराचारी होनेपर भी) दुराचारी नहीं कहता, दूसरों को क्रुद्ध करनेवाले वचन नहीं बोलता, सब जीव अपने २ शुभाशुभ कर्मों के अनुसार सुख दुःख भोगेंगे ऐसा मानकर अपने ही दोषों को दूर करता है और जो अपने आपका (अपने : पदस्थ किवा तप का) अभिमान नहीं करता वही आदर्श श्रमण है। है। ।
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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