SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ __ दशवकालिक सूत्र । गृहस्थ के घर बैठने से लगनेवाले दोप श्] ब्रह्मचर्य व्रत के पालने में विपत्ति (तति) आने की संभावना है। वहां प्राणीनों का वध होने से साधु का संयम दूपित हो सकता है। यदि उसी समय अन्य कोई भिखारी मितार्थ श्रावे तो उसको श्राघात होने की संभावना है और इससे उस गृहस्थ का कोप भाजन बन जाने का डर भी है। टिप्पणी-गृहत्य लियों के प्रति परिचय से कदाचिर ब्रह्मचर्य भंग हो जाने का डर है। गृहत्य लो, परिचय होने से रागी दन कार उत मिनु के निमित्त खानपान बनाये जिसने जीवों की विराधना होने का डर है और घर के मालिक को भी नुनि के चरित्र पर संदेह होने से क्रोध करने का प्रवत्तर आ सकता है। इत्यादि दोष परंपराओं पर विचार करके हो महर्षियोंने भिन्नु को गृहस्थ के घर जाकर बैठने की ननाई की है। [१६] गृहस्य के घर जाकर बैठने से ब्रह्मचर्य का यथार्थ पालन (रतण) नहीं हो सकता और गृहस्थ स्त्री के साथ अतिपरिचय होने से दूसरों को अपने चरित्र पर शंका करने का मौका मिल सकता है। इसलिये ऐसी कुशीलता (दुराचार) को बढाने वाले स्थान को संयमी दूर ही से छोड दे (अर्थात् मुनि. गृहस्थों के यहां जाकर न बैठे)। टिप्पणी-गृहत्यों के यहां शारीरिक कारण विना दैठना अथवा कथावार्ता आदि कहना ये सब बातें संपन को घातक है इसलिये इनका त्याग करना उत्रित है। [६०] किन्तु रोगिष्ठ, तपस्वी अथवा जरावस्था से पीडित इनमें से किसी भी प्रकार का साधु गृहस्थ के घर कारणवश बैठे तो वह करप्य है। टिप्पणी-रोग, तपश्चर्या तथा बुढापा शरीर को शिथिल बना देते है। इसलिये गोचरी के निमित्त गया हुआ ऐसा साधु थक कर हाँफने लो या
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy