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________________ १६ ने वडा महत्व दिया है और एक महान् प्रस्तर खड की विशाल मूर्ति बना कर उनके सिद्धातो का प्रचार किया है, जो इस बात का द्योतक है कि वाहुबली की उक्त मूर्ति त्याग, भक्ति, अहिंसा और परम आनन्द की प्रतीक है। उस मूर्ति की पृष्ठभूमि विस्तीर्णता, पूर्णता और अव्यक्त आनन्द की जनक है और मूर्ति की अग्रभूमि काल, अन्तर, भक्ति और नित्यता की उद्बोधक है । यद्यपि दक्षिण भारत में कारकल और वेणूर में भी वाहुवली की विगाल मूर्तिया एक ही पापाण मे उत्कीर्ण की हुई है तथापि श्रवणवेल्गोल की यह मूर्ति सबसे अधिक आकर्षक होने के कारण सर्वश्रेष्ठ है । बाहुवली की मूर्ति का इतिवृत्त हमें दक्षिण भारत के जैनधर्म के रोचक इतिहास की गोर ले जाता है। श्रवणवेल्गोल में उत्कीर्ण गिलालेखो के आधार पर इस बात का पता लगता है कि मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्त के समय में अतिम श्रुतकेवली भद्रबाहु १२००० जैन श्रमणो का सघ लेकर उत्तरापथ से दक्षिणापथ को गये थे। उनके साथ चन्द्रगुप्त भी थे। प्रोफेसर जेकोबी का अनुमान है कि यह देशाटन ईसा से २६७ वर्ष से कुछ पूर्व हुया था । भद्रवाहु ने अपने निर्दिष्ट स्थान पर पहुचने से पूर्व ही मार्ग में चन्द्रगिरि पर्वत पर समाधिमरण-पूर्वक देह का विसर्जन किया। इस देशाटन की महत्ता इस बात को सूचक है कि दक्षिण भारत में जैन धर्म का प्रारम्भ इसी समय से हुआ है। इसी देशाटन के समय से जैन श्रमण-सघ दिगम्बर गौर श्वेताम्बर दो भागों में विभक्त हुआ है। भद्रवाहु के संघ गमन को देखकर कालिकाचार्य और विशाखाचार्य के सघ ने भी उन्हीका अनुसरण किया। विशाखाचार्य दिगम्बर सम्प्रदाय के महान् आचार्य थे जो दक्षिण भारत के चोल और पाड्य देश में गये। महान् आचार्य कुन्दकुन्द के समय में तामिल देश में जैनधर्म की स्याति में और भी दृद्धि हुई। कुन्दकुन्दाचार्य द्राविड थे और स्पष्टतया दक्षिण भारत के जैनाचार्यों में प्रथम थे। काचीपुर और मदुरा के राजदरवार तामिल देश में जैनधर्म के प्रचार में विशेष सहायक थे। जव चीनी यात्री युवान बुवाग ईसा की ७वी शताब्दी में इन दोनो नगरो में गया तो उसने काची में अधिकतर दिगम्बर जैन मदिर पाये और मदुरा में दिगम्बर
SR No.010490
Book TitleShravanbelogl aur Dakshin ke anya Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkrishna Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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