SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूमिका गोम्मटेश्वर के महामस्तकाभिषेक के अवसर पर श्री राजकृष्ण जैन ने श्रवणबेलगोल पर जो प्रस्तुत पुस्तक लिखी है और उसकी भूमिका लिखने के लिए मुझे प्रेरित किया है, मुझे हर्प है कि में भी इस भूमिका को लिखकर उस उत्सव में योग दे रहा हू । मैसूर में श्रवणवेल्गोल नगर में विव्यगिरि पर्वत पर जो गोम्मटेश्वर की विशाल मूर्ति है वह प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की महारानी सुनन्दा के पुत्र वाहुवली की है । दक्षिण भारत में जैनधर्म का स्वर्णयुग साधारणतया और कर्नाटक में विशेषतया गगवश के शासको के समय में था, जिन्होने जैन धर्म को राष्ट्र-धर्म के रूप में अगीकार किया था । महान् जैनाचार्य सिंहनन्दी गगराष्ट्र की नीव डालने के ही निमित्त न थे, बल्कि गगराष्ट्र के प्रथम नरेश कोगुणिवर्मन के परामर्शदाता भी थे। माघव (द्वितीय) ने दिगम्बर जैनो को दानपत्र दिये । इनका राज्यकाल ईसा के ५४०-५६५ रहा है । दुर्विनीत को वन्दनीय पूज्यपादाचार्य के चरणो में बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । इनका राज्यकाल ई ६०५ से ६५० रहा है । ई ६५० में दुर्विनीत के पुत्र मुशकारा ने जैनधर्म को राष्ट्रधर्म घोषित किया । बाद के गंग-शासक जैनधर्म के कट्टर सरक्षक रहे है । गगनरेश मारसिंह (तृतीय) के समय में उनके सेनापति चामुण्डराय ने श्रवणवेल्गोल में गोम्मटेश्वर की विशाल मूर्ति का निर्माण कराया। मारसिंह का राज्यकाल ईसा की ε६१-६७४ रहा है । जैनधर्म में जो अपूर्व त्याग कहा जाता है, मारसिंह ने उन सल्लेखना द्वारा देहोत्सर्ग करके अपने जीवन को अमर किया । राजमल्ल ( प्रथम ) ने मद्रास राज्यान्तर्गत उत्तरी आरकोट जिले में जैन गुफाए वनवाईं । इनका राज्यकाल ई ८१७-८२८ रहा है । इनका पुत्र नीतिमार्ग एक अच्छा जैन था । वाहुवली के त्याग और गहन तपश्चर्या की कया को गुणग्राही जैनो
SR No.010490
Book TitleShravanbelogl aur Dakshin ke anya Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkrishna Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy