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________________ २४४ सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की ५५-परा इन दोनो ग्रन्थो से प्रेरणा पाकर E B Cowcll ने बरमचि के प्राकृतप्रकाश की छह प्रतियो के आधार पर सर्वप्रथम गपादितकार भामह की प्राचीनतम मनोरमा टीका के साथ १८५४ मे Hertvhrd मे प्रकाशित किया। वही मे मी का द्वितीय सस्करण १८६८ मे और कलकत्ता ने तृतीय म-कण १९६२ में हुआ। Cowell ने अपनी भूमिका में प्राकृत व्यान.२.पी-विशेषत. वाचि और हेमचन्द्र की --का सर्वेक्षण किया। मूल के माय ही अग्रेजी अनुवाद और पाच परिशिष्ट भी जोडे गये । इन परिशिष्टो में एक परिशिष्ट ऐमा भी है जिनमें हेमचन्द्र द्वारा लिग्वित गोरमेनी प्राकृत के नियम-नून सवालिन यि ये है और अन्य मे हेमचन्द्र के ही स्वर नविगत मूत्रो को रख दिया गया है। अन्त में एक विस्तृत शब्दसूची दी गई है जिसमे प्राकृत गन्दो की मस्कृत छाया भी गमाहित कतिपय विद्वान् चाड के प्राकृत लक्षण को वरचि से भी पूर्ववत्ती मानने है । प्राकृत लक्षण का सर्वप्रथम म-पादन I Hocrnle ने किया जो १८८० मे कलकत्ता से The Prakrit Lakshanam or Chanda's Grammer of the ancient (714) Prakrit, Pt I text with a critical introduction and indexes नाम से प्रकागित हुआ। इसका सम्पादन चार प्रनियो के आधार पर हुआ | Hoernle की दृष्टि मे चड ने आप (अर्थ मागवी महाराष्ट्री) ०. करण लिखा है और यह चण्ड वररुचि से पूर्ववर्ती है। परन्तु Block ने अपने Vararuci Unt Hemachandra शीर्षक निवन्ध मे इस मत का खण्डन किया और कहा कि चण्ड ने अपना व्याकरण हेमचन्द्र आदि अनेक वैयाकरणो से उधार लिया है। इतना ही नहीं, उसमे अशुद्धिया भी बहुत है। पिशेल ने इन दोनो मतो का खण्डन किया और कहा कि चण्ड उतना प्राचीन नहीं जितना Hoernle मानते हैं । चण्ड ने प्रथम श्लोक मे ही 'वृहमतात्' शब्द का प्रयोग कर यह स्पष्ट कर दिया कि उन्होंने पूर्ववर्ती वैयाकरणो का आधार लिया है। यह श्लोक क्षेपक या प्रक्षिप्त नही बल्कि लगभग सभी प्रतियो मे उपलब्ध है। उन्होने अपने ग्रन्य मे महाराष्ट्री, अर्धमागधी, जैन महाराष्ट्री और जैन शौरसेनी के सामान्य नियमो को प्रस्तुत किया है । व्यूलर ने इस ग्रन्य की समीक्षा "साइटश्रिफ्ट डेर मौन लेण्डिशन गेजेलशाफ्ट' मे प्राकृत भाषान्तर विधान कहकर की है। कमदीश्वर का सक्षिप्तसार हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण के आधार पर लिखा गया है। इसके अध्यायो को प्राकृतपाद कहा गया है। प्रथम सात प्राकृत पाद मे सस्कृत व्याकरण और अण्टमपाद मे हेमचन्द्र के समान प्राकृत व्याकरण को निबद्ध किया है। इस व्याकरण का सर्वप्रथम सम्पादन Lassen ने १८३६ मे 'इन्स्टीट्यूत्सीओनेस' मे किया जिसका कुछ भाग राडियत प्राकृतिका ए (वीन्नाए
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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