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________________ २१६ संस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोण की परम्परा ६० किया है। इस ग्रन्थ मे नौ प्रकाश है। श्री नृसिंह गुरु को प्रणाम कर शेपकृष्ण ने प्रारम्भिक पाठको के लिए यह प्राकृतचन्द्रिका' लिखी है श्रीनृसिंहगुरोर्नत्वा पदपंकर्जतल्लजम् । विशदार्थ्य शिशुहिता कुर्वे प्राकृतचन्द्रिकाम् ||३|| इस ग्रन्थ के प्रथम प्रकाश मे सामान्य नियम, द्वितीय मे अमयुक्त आदेश, तृतीय मे मयुक्त आदेश तथा चतुर्थ मे अव्ययो का वर्णन है। पंचम प्रकाश मे सुवन्त और ४० मे मख्या आदि पर विचार है । तिगन्त का विवेचन नातवे प्रकाश मे एव कृदन्त का आठवे प्रकाश मे है | नवा प्रकाश विविध भाषाओ का अनुशासन करता है | इस 'प्राकृतचन्द्रिका' मे हेमचन्द्र एवं त्रिविक्रम के ग्रन्थों को दाधार बनाया गया है | 1 ७. रघुनाथकत्रि प्राकृतानन्द प० रघुनाथ कवि १८वी शताब्दी के विद्वान् थे । इनके 'प्राकृतानन्द' मे ४१९ सूत्र है । ग्रन्थ के प्रथम परिच्छेद मे शब्द और दूसरे परिच्छेद में धातु-विचार किया गया है । प० रघुनाथ ने वररुचि के प्राकृतप्रकाश' के सूत्रो का यह सक्षिप्त सस्करण निकाला है ।" यह ग्रन्थ सिंघी जैन ग्रन्थमाला, बम्बई मे प्रकाशित हुआ है | ८. अज्ञातकर्ता के प्राकृतपद्यव्याकरण તાલમારૂં લપતાઈ ભારતીય સંસ્કૃત્તિ વિદ્યા વિર બમવાવાવ મેં ૬ પત્રો की एक अपूर्ण प्रति उपलब्ध है, जो लगभग १७वी शताब्दी मे लिखी गयी है | यह एक प्राकृत पद्य व्याकरण है। उसका कर्ता अज्ञात है । ग्रन्थ के नाम का भी पता नही चलता । इस प्रति मे कुल ४२७ श्लोक है । ग्रन्थ का प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है मस्कृतस्य विपर्यस्त सस्कारगुणवजतम् । विज्ञेय प्राकृत तत् तु (यद् ) नानावस्यान्तरम् ||१|| समानशब्द विभ्रप्ट देशीगतमिति तिधा । सौरसेन्य च मागध्य पैशाच्य चापभ्र शिकम् ॥२॥ देशीगत चतुर्धेति तदग्रे कथयिष्यते ।" 1 इस ग्रन्थ के सम्पादन व प्रकाशन से इसकी पूरी विषय वस्तु का पता चल सकेगा । जात होता है कि इन शताब्दियों मे पद्यवद्ध प्राकृत व्याकरण लिखने की प्रवृत्ति चल पडी थी । इन उल्लिखित प्राकृत व्याकरण ग्रन्थों के अतिरिक्त कुछ अन्य प्राकृत व्याकरणो के भी ग्रन्थो मे उल्लेख मिलते है । कुछ उपलब्ध भी हुए हैं ।
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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