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________________ प्राकृत व्याकरणशास्त्र का उद्भव एव विकास २१५ है। इस ग्रन्थ का सर्वप्रथम प्रकाशन १६३६ मे श्रीमती लुइगा नित्ति डोल्पी ने पेरिस से किया। उसके बाद यह ग्रन्थ प्राकृत के विद्वानो का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। १९५४ मे डा० मनमोहन घोप ने इसे कलकत्ता से प्रकाशित किया है। 'प्राकृतकल्पतर' मे तीन शाखाए है। प्रथम शाखा मे दस स्तवक है, जिनमे महाराष्ट्री के नियमो का प्रतिपादन किया गया है। दूसरी शाखा मे तीन स्तवक है । इनमे शौरसेनी, प्राच्या, अवन्ती, वाल्हीकी, मागधी, अर्धमागधी और दाक्षिणात्या भाषा का विवेचन है। दाक्षिणात्या के सम्बन्ध मे कहा गया है कि पदो से मिश्रित, संस्कृत आदि भाषाओ से युक्त इस भाषा का काव्य अमृत से भी अधिक सरस होता है। इस दूसरी शाखा मे अन्य सभी विभाषाओ के स्वरूप की विवेचन है। तीसरी शाखा मे नागर और नाचड अपभ्र श तथा पैशाचिक का विवेचन है। ५ लकेश्वर-प्राकृतकामधेनु लकेश्वर अथवा प्राकृत लकेश्वर रावण ने 'प्राकृतकामधेनु' की रचना की है। ग्रन्थ के मगलाचरण से ज्ञात होता है कि लकेश्वर ने प्राकृत व्याकरण पर प्रारम्भ मे कोई वडा ग्रन्थ लिखा था, जिसे सक्षिप्त कर 'प्राकृतकामधेनु' लिखा गया है। डा० मनमोहन घोप एच डा० जी० सी० वसु आदि ने इस ग्रन्थ पर प्रारम्भ मे कुछ लेख लिखे थे।६६ वाद मे डा० घोष ने इस ग्रन्थ को 'प्राकृतकल्पतर' के साथ परिशिष्ट २ मे पृ०० १७०-१७३ पर प्रकाशित किया है। इस ग्रन्थ मे ३४ सूतो मे प्राकृत के नियमो को विवेचन है। कुछ सूत्र अस्पष्ट है। अपभ्रश की उकार प्रवृति का भी इसमे सकेत है। __ अभी हाल मे ही वृन्दावन के एक ग्रन्थ भण्डार से 'प्राकृतकामधेनु' की एक पाण्डुलिपि प्राप्त हुई है, जिसका परिचय डा० एस० आर० वनर्जी ने अ० भा० प्राच्यविद्या सम्मेलन के २८वे अधिवेशन धारवाड मे प्राकृत के विद्वानो के समक्ष प्रस्तुत किया था। सभव है, इसके विधिवत् सम्पादन से इस ग्रन्थ व ग्रन्थकार पर कुछ विशेष प्रकाश पडे। ६ शेषकृष्ण-प्राकृत चन्द्रिका शेपकृष्ण की 'प्राकृतचन्द्रिका' श्लोकबद्ध प्राकृत व्याकरण है। इसके कुछ उद्धरण पीटर्सन ने अपनी तृतीय रिपोर्ट (पृ० ३४२-४८) मे दिये थे। उसके बाद कुछ अन्य विद्वानों ने भी इस पर ध्यान दिया । इधर १९६६ ई० मे श्री सुभद्र उपाध्याय ने पाच कोशो की सहायता से 'प्राकृतचन्द्रिका' का प्रकाशन
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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