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________________ momomommommommemom विजयनगरकी शासन मास्वायनर्म। [११३ मस्त मंदिरको गाणिगिति वसति' कहते है। अनुमान किया जाता कि किसी धर्मात्मा तेलिनने इस मंदिरका जीर्णोद्धार करावा वाइसलिये इस मंदिरकी प्रसिद्धि " गणिगित " ( लेकिन ) का मंदिर बामसे हुई थी। इस मंदिरके सम्मुख एक दीपम पर शिगळेस नतिजो संस्कृत भाषा २८ श्लोकों में निपद्ध। इसमें श्री हिन्याचार्यकी गुरुशिष्य पागा निम्नप्रकार लिखी हुई: मुस-ननि:संप-बलात्कारगण-सारस्वतगन भाचार्य पद्मनन्दी भधारक धम्मभूषण प्रथम अमरकति सिंहनन्दी गणभर भाक धम्मभूषण बदमान महारक मुनि धर्मभूषण द्वितीय नाचार्य पवनन्दीमे शिलालेखमें कुन्दकुन्दाचार्य मामिप्रेत है। उसमें उनके पवि नाम (१) कुंकुंद, (२) वक्रगीय, (३) महामति, (१) एकाचार्य नौर (५) गृद्धपिच्छ प्रगट किये गये है। इसके बने जोक्से विदित होता है कि उस समय श्रमण परम्पगमें १-माचाग्यः कुशाल्यो पानीको महामतिः । येकाचार्यो पिक बामपंचा। " -
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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