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________________ ११.] - संबित न इतिहास । साधुवेषियों का बाहुस्म हो गया था। केवाजानी पेट भरनेवाले माधुवेषी कहे गये हैं। भ. सिंहनन्दीको इस शिलालेखमें जिन धर्मरूपी पवित्र प्रासादका स्तम्भ कहा है। ३३ लोकसे पट है. किवंश इलाका धनुष लोगोंको सम्पाचारित्रकी शिक्षा देता था। हरिहरनरेशकी राजक्ष्मीको श्रीवृद्धि उन्होंने की थी। सिंहनन्दीगुरुके परणों के बह भक्त थे। उनके सुचारु शासन-सूत्रसे विजयनगर समृद-. शाली हुमा था। वहाकी सड़कोंमें बहुमूल्य व जड़े हुये थे। ऐसे विशाल नगामें रूगने कुंथुजिनालय बनवाया था। इरुगप्प केक योद्धा और राजनीतिज्ञ ही नहीं थे वह एक महान साहित्याथी और विश्वकर्मा भी थे। सन् १३९४ में उन्होंने कूणिगल नामक एक सुन्दर सरोवर निर्माण किया था। इस सरोबाके निर्माण सम्बन्धी शिलालेखसे मष्ट है कि इरुगप्प संस्कृत भाषाके श्रेष्ट विद्व न् थे। उन्होंने संस्कृत भाषामें "नानार्थम्नाकर" नामक ग्रन्थकी रचना की थी। इगर न केवल हरिहर द्वितीयके राजमंत्री थे, पक्षिक सम्राट देवगन द्वितीयके शासनकालमें भी वह उस महती पद पर नियत रहे थे। सन् १४२२ में उनाने का प्राणवेल्गोड तीर्षकी यात्रा की तो गुरु श्रुतमुनिकी बंदना करके उन्होंने गोमटेश्वाकी पूजा के लिए रेल्गोक नामक ग्राम मेंट किया था। सन् १९९२ में यह वैन सेनापति गोवे (Gos) और चंद्रगुत्तिके वायसराय थे। इस प्रकार सेनापति गम एक विश्वसनीय सेन्यनायक, तुर शिसवेता गौर सफल शासक पासाब गुण- साहित्यपविता प्रमाणित होते है। खोपरिर्वात मग साठ वर्षे (१३८३-१११११),
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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