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________________ पाकथन। - जिनमें ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य और शूद्र आदि सब हीका समावेश हुआ समझिये अर्थात जैन होते हुये भी प्रत्येक व्यक्तिकी जाति ज्योंकी त्यों रहती है, इसमें संशय नहीं है; यद्यपि किसी अजैनके जैनधर्ममें दीक्षित होते समय उसकी आजीविका-वृत्ति और रहनसहनके अनुसार उसको उपयुक्त जातिमें सम्मिलित किया जाप्तकता है। अतः जैनधर्म विषयक इस संक्षिप्त इतिहासमें जैन महापुरूषोंका और जैनधर्म सम्बन्धी विशेष घटनाओं का परिचय एवं उसन प्रभाव भिन्नर कालोंमें उस समयकी परिस्थितिपर कैसा पड़ा था, यह बतलाना इष्ट है। इसके प्रथम भागमें भगवान पार्श्वनाथभी तकमा सामान्य परिचय प्रकट किया नाचुका है। इस भागमें भगवान महावीरजीके समयसे उपरान्त मध्यकालतकके नैन इतिहासको संक्षेपमें प्रकट किया जाता है। प्रथम भागमें जैन भूगोलमें भारतवर्षका स्थान और उसका प्रारूतरूप आदिका परिचय कराया जाचुका है। सचमुच किसी देशकी प्राकृतिक स्थितिका प्रभाव अपनी भारतकी का खास विशेषता रखता है। उसदेशका इतिहास दशाका प्रभाव । ही उस प्रभावके ढंगपर ढल जाता है। भारत के विषयमें कहा गया है कि उसकी प्राकृतिक स्थितिका सामाजिक संस्थाओं और मनुष्योंकी रहनसहन पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। धीरेर बड़ी बड़ी नदियों के किनारे सुरम्य नगर बस गये जो कालान्तरमें व्यापारके प्रसिद्ध केन्द्र होगये । भूमिके उर्बरा होनेसे देशमें धन १-आदिपुराण पर्व ३९।
SR No.010473
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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