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________________ इन्डो-बैक्ट्रियन और इन्डो पार्थियन राज्य। [१५ प्रथम शताब्दिमें भारतीय शकराजा 'गाउनानुशाउ' नामक उपाधि ग्रहण करते थे. यह बात इतिहाससिद्ध है। अतः कालक कथानकसे भी 'जैन धर्मके प्रति शक लोगोंकी सहानुभूति' होना प्रकट है । इन शकोका राज्य ई० पूर्व १००से ५८ तक उत्तर व पश्चिमी भारतमें रहा था। कुगनवंगमे कनिष्क सबसे प्रतापी राजा था। उसने अपने पराक्रमसे चीन आदि कई देशोंको जीता और सम्राट कनिष्क । साम्राज्यका विस्तार वढाया था। वह सन् ७८ ई० मे राजसिंहासनपर आरूढ़ हुआ और उसका अधिकांश समय युद्ध करनेमे बीता था । पेशावर (पुरुपपुर) उसकी राजधानी थी। वहीमे वह अपने सारे राज्यका प्रवन्ध करता था, जिसमें पश्चिममें फारस तकका कुछ हिस्सा और पूर्वमें समस्त उत्तरीय भारत पाटलिपुत्र तक सम्मिलित था। कहते है कि गद्दीपर बैठनेके कुछ दिनों बाद कनिष्कने बौद्ध धर्म धारण किया था। उसके राज्यकालमे बौद्ध संघकी एक सभा हुई थी; जिसके निर्णयके अनुसार उत्तरीय भारतके बौद्ध लोग महायान-सम्प्रदायवाले कहलाने लगे थे और दक्षिण 'हीनयान' सम्प्रदायके नामसे प्रसिद्ध हुए थे। कनिष्कने बौद्ध धर्मका खूब प्रचार किया था। उसके समयमें भारतीय व्यापारकी भी खूब वृद्धि हुई थी। कनिष्क विद्याव्यसनी था और उसने कई इमारतें वनवाई थीं। तक्षशिलाके निकट उसने एक राजधानी बनवाई थी। वह आज सरसुख टीलेके नीचे दवी पड़ी है। यमुनाके किनारे मथुराके निकट भी उसने बहुतसी १-भाइ० पृ० ७९-८१.
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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