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________________ १४ संक्षिप्त जैन इतिहास । शक लोग जैन-धर्मके प्रति महाव रग्वनं यं यह वात श्वेता __म्बर जैन ग्रन्थोके — काल्काचार्य कथानक ' काल्काचार्य। मे भी स्पष्ट है ।' काल्काचार्यके समयमे उज्जैनका राजा गर्दभिल्ल था । उसने अपनी विषयलम्पटताके वश हो. काल्काचार्यकी बहिन आर्यिका सम्बनीको बलात्कार अपनी नी बनालिया । कालाचार्यको गजाका यह अन्याय और पापकृत्य असह्य होगया। उन्होंने अन्ययका विच्छेद करनेके लिये शाकटेश (सैम्तन Setstan) की ओर प्रयाण किया और -वहाके शकराजाओंसे मैत्री करली । कोंके राजा ' साहाणुसाहि ने उन्हें राजद्रोहके अपराधमे दण्ड देना चाहा। उन शकोंने काल्काचार्यका कहना माना और इ० पू० १२३के लगभग ९६ शाही (शक) कुल सिन्धु नदीको पार करके सौराष्ट्रमे आजमे। उनमेसे एक उनका -राजा होगया। कालकने उसे उज्जैनीपर आक्रमण करनेके लिये उत्साहित किया। शकराजाने काल्काचार्यके आग्रहमे उज्जैनीपर ई० पू० १००मे हमला किया। गर्दभिल्लके पापका घडा भर गया था। वह शक सेनाके सामने टिक न सका। मैदान छोड़कर भाग गया। फलत शकराजा उज्जैन अथवा मालवाके शासनाधिकारी हुये। काल्काचार्यका उन्होंने आदर किया। आर्यिका सरस्वतीकी भी मुक्ति होगई । वह प्रायश्चित्त ग्रहण कर पुनः ध्यान लीन होगई। विद्वान् लोग इस कथानकको सच्चा मानते है। उस समय अर्थात ईसवी पर्व १-प्रभावक चरित्र (१९०९ बम्बई) पृ० ३६-४६ व जवि. मोसो० भा० १६ पृ० २९०.२-कैहि इ० पृ० १६७-८ व ९३२.३: अलाहाबाद यूनीवर्सिटी स्टडीज भा० २पृ० १४८जविमोसो०भा०१६.
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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