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________________ १६ ] संक्षिप्त जैन इतिहास | इमारते बनाई थीं । मथुरा के पास कनिककी एक सुंदर नृति निकली है। कनिष्कका राजवैध आयुर्वेदका प्रसिद्ध विद्वान चरक था।' प्रभाव । यद्यपि भारतमे यूनानियों और शकका राज्य रहा था और वे लोग यहापर यम भी गये थे. परन्तु उनकी विदेशी आक्रमणोंका यूनानी या रोमन सभ्यताका प्रभाव भारतपर प्राय नहीं के बरावर पडा था । विद्वान् कहने हे कि बौद्ध धर्मपर अवश्य उसका कुछ प्रभाव पड़ा था । किन्तु ब्राह्मण और जैन धर्मोपर उसका असर कुछ भी नहीं पडा था । यूनानी भाषा कमी भारतमे लेोकप्रिय नहीं हुई और न भारतियोने यूनानियोंके वेषभूषा ओर रहन महनको ही अपनाया था। हा, भारतकी स्थापत्य, आलेग्ब्य और तक्षण विद्यापर उसका किचित् प्रभाव पडा था, परन्तु वह नहींके बराबर था। सचमुच उम समयके भारतीयोंके लिये यह बात बडे गौरवकी है कि उन्होंने अपनी प्राचीन आर्य संस्कृति और सभ्यताको अक्षुण्ण रक्खा । विदेशियोंके सम्पर्कमे रहते हुये भी वह उनके द्वारा तनिक भी प्रभावित नहीं हुये । प्रत्युत उन्होंने अपनी संस्कृति और धर्मका ऐसा प्रभावशाली असर उन लोगों पर डाला कि वे उसपर मुग्ध होगये और उनमेसे अधिकाशने ब्राह्मण, बौद्ध अथवा जैनमतको ग्रहण कर लिया और धीरे २ वह सब मिल जुलकर हिन्दू जनतामे एकमेक होगये । " कनिष्क और उसके उत्तराधिकारियो - हुविष्क और वासुदेवके 1 १- लाभाइ०, पृ० १९७ - २०४ । २ - महि० पृ० ४२९ व लाभाइ० पृ० २०३ ।
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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