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________________ इन्डो-पैक्ट्रियन और इन्डो पार्थियन राज्य। [१३ संभवन अजेसके पराक्रमय ही शक राज्यका आधिपत्य तमाम उत्तर पश्चिमीय भारतमे जमना नदी तक महाराज अजेसके स्थापित होगया था। उसने 'क्षत्रप नियत. समयमें जैनधर्म। करके पारस्य देशकी राजनीतिकी तरह अपना शासन व्यवस्थित किया था। उसके सिक्कोंपर 'महरजस रजरजस महातस अयस' अथवा 'महरजस रजदिरजस महतन अयस' या ' महरजस महतस ध्रमिकस रजदिरजस अयस ' लेख मिलते है। महाराजा अजेसके समय (ई० पूर्व प्रथम शताब्दि) में तक्षशिलामे जैनधर्म उन्नतिपर था। उस समयकं बने हुए कई जैत स्तुप वहा आज भी भग्नावशेष है । एक स्तूपके भीतरसे महाराजा अजेसके आठ तांबेके सिके, और एक छोटीसी सोनेकी डिविया जिनमें अस्थि-अंश स्वर्णके टुकडे और हाथीदांत एवं पाषाण मणिकायें क्खे हुये थे. निकले थे। इन स्तूपोंकी बनावट ठीक मथुराके जैन स्तूपकी बनावटके समान हैं। इन्हीं स्तूपोंके पासवाली इमारतों से एक लेख अरेमिक (Aramaic) भाषाका ईसवीसन्से पूर्वका निकला है। भारतमें इस लिपि और इस भाषाका यही एक लेख है। हत्भाग्यसे यह अभीतक ठीक २ पढ़ा नहीं गया है। डॉ० बार्नेट और प्रो० कोली इसमें एक हाथीदातके महलके बनवानेका उल्लेख हआ बतलात है। किन्तु एक धार्मिकस्थान-स्तपके निकट महलका बनना कुछ ठीक नहीं जंचता! संभवतः यह महल 'जिन-प्रसाद' अर्थात् जैन मंदिरका द्योतक होगा। १-तक्ष० पृ० १३. २-माप्रारा० मा० २ पृ० १९६.३-तक्ष० पृ० ७६-८०.
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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