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________________ इन्डो-पैक्ट्रियन और इन्डा पार्थियन राज्य। [९ आजकलके जैनियोंको प्रस्तुत इतिहाससे देखना चाहिये कि उनके पूर्वजोंने किस प्रकार धर्मका गौरव प्रगट किया था । जीव मात्रका कल्याण करनेके लिय उन्होंने निःशंक वृत्ति स्वीकार की थी। जैनधर्मका मूल रूप उनके चारित्रग्ये स्पष्ट है। आज भी उनके आदशंका अनुकरण करना श्रेयस्कर है। प्रस्तुत पुस्तक पाठकोंके लिये इस विषयमे मार्गदर्शकका कार्य करे. यही हमारी अभिलाषा है। सचमुच इतिहासका कार्य ही यह है । वह सुधार और शौर्यका पाठ पढ़ाता है, मुर्दा दिलोमें नये उत्साह और नये जोशको जगाता है। भारतको आज ये वीरभावोत्पादक धर्मकी आवश्यक्ता है ! भारत-संतान अपने वीर पूर्वजोको जाने और उन्हें पहचानकर उनके पगचिन्होंपर चलनेका प्रयत्न करे, यही भावना है। सचमुचः "यह थे वह वीर जिनका नाम सुनकर जोश आता है। रगार्मे जिनके अफसानोंसे चकर खून खाता है।" um इन्डो बाक्ट्रियन और इन्डो हाथियन राज्य छत्रप व कुशन-साम्राज्य । (सन् २२६ ई० पू० से २०६ई०) भारतके उत्तरमे यनानियोंने अपना राज्य स्थापित किया था। सम्राट् चन्द्रगुप्तके वर्णनमें लिखा चैक्ट्रियन और पार्थि- जाचुका हे कि सिल्यूकस नाइकेटर भारतसे - यन राज्य। परास्त होकर बलख आदिकी ओर लौट गया था। सन् २६१ ई० पू०में सिल्कसकी मृत्युके पश्चात् उसका पुत्र एण्टिओकस राजा हुआ परन्तु
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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