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________________ - - - ८] संक्षिप्त जैन इतिहास । चतलान है। बात जन अहिसा प्रत्येक श्रेणीके मनुप्यके लिये व्यवहार्य है। वह मनुष्य के जीवन मार्गको निर्मल और निगह बनाती है। जबतक जैनी उसके वास्तविक स्वरूपको ग्रहण किये गं बह खूब फले. फले। भ० महावीर के निकट प्राय सार भारतने अहिंसा धर्मकी दीक्षा ली थी। भारतीय गष्ट सञ्चा अस्मिक इतिहास सुधार और वीर बन गया था। फलत भ० महावीरका शौर्यका प्रवर्तक है। धर्म विशेप उन्नत हुआ था और विदेशी ___ लोग भी भारत-विजयकी लालसाम हताग होकर अपने२ दशोको लौट गये थे । प्रस्तुत ग्रन्थमे जो इतिहास संकलित है, वह इस व्याख्याको दर्पण-वत स्पष्ट करता है । हिन्दू ग्रंथोंकी साक्षी भी इस काल्मे जैन धर्मान्कर्षका समर्थन करनी है। यवन शक आदि विदेशी लोग तक जैनधर्मकी शरणमे आये थे। हिंद शास्त्रकारोंने इन्हें 'वृषल' कहकर अपने धर्मसे बाह्य प्रकट किया है। इन सब बातोसे स्पष्ट है कि जैनधर्म वस्तुत एक शक्तिशाली धर्म है और उसके द्वारा जगतका कल्याण विशेष हुआ है। अर्थ-"जो रणाङ्गणमें युद्ध करनेको सन्मुख हो अथवा अपने देशके कण्टक-उसकी उन्नतिमें बाधक-हों क्षत्रिय वीर उन्हीके ऊपर शस्त्र उठाते हैं-दीनहीन और साधु आशयवालोंके प्रति नहीं विशेषके लिये देखो "जन अहिसा और भारतके राज्यों पर उसका प्रभाव" १-'गर्गसहिता के उल्लेखसे कि 'वृषल भिक्षुक होंगे' (भिक्षुका वृषला लोके भविष्यन्ति न संशय ' उस समय ब्राह्मणोतर साधुओंकी बाहुल्यता स्पष्ट है। र-'मानवधर्मशास्त्र' (१०४३-४४)में पौण्ड, उडू, द्रविड़, कम्बोज, यवन, शक आदिको ब्राह्मण विमुख 'वृषल' हुआ लिखा है।
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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