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________________ १७६] संक्षिप्त जैन इतिहास | प्रगस्तिमे लिखा है कि "वारा नगरमे गाति नामक राजाका राज्य था। यह नगर धनधान्यसे पूर्ण था। सम्यग्दृष्टि-जनोंसे, मुनियोंके समूहसे और जैनमंदिरोंसे भूपित था । राजा शान्ति जिनगासनवत्सल, वीर और नरपति संपूजित था। श्री पद्मनंदिजीने अपने गुरु आदि रूपमे इन दिगम्बर मुनियोका उल्लेख किया है; वीरनंदि, बलनंदि, ऋपि विजयगुरु, माघनंदि. सकलचंद्र और श्रीनंदि ।' वारानगरके संघमे उपरान्त निम्नाङ्कित आचार्योका अस्तित्व मिलता है। (१) माघचन्द्र सन् १०८३ ई०. (२) बम्नंदि १०८७ ई०, (३) शिवनंदि १०९१ ई०. (१) विश्वचन्द्र १०९८ ई०. (५) हरिनन्दि (सिंहनंदि) १०९०. ई०. (६) भावनंदि ११०३ ई० (७) देवनंदि १११० ई०, (८) विद्याचन्द्र १११३ ई०. (९) सूरचन्द्र १११९ ई०, (१०) माघनंदि ११२७ ई०, (११) ज्ञाननंदि ११३१ ई० (१२) गंगकीर्ति ११४२ । गंगकीर्तिके पश्चात् वारानगरके स्थानपर संघका केन्द्र बालियर होगया था। बारहवीं शताब्दिके अंततक वहा जैनधर्मका खूब उत्कर्ष हुआ। कितु सन् १२०७ मे भट्टारक वसन्तकीर्तिने अजमेरको अपना केन्द्र बनाया। उक्त दिगंबर जैनाचार्य देशभरमे सर्वत्र विहार करके धर्मोद्योत __ करते थे। परवादियोंसे वाद करनेमें उन्हें प्रसिद्ध दिगंवराचार्य। आनन्द आता था। वि० सं० १०२५ मे अल्ल नामक राजाकी सभामे दिगम्बराचा१-जैसास०, मा० १ अङ्क ४ पृ० १६० । २-जैहि०, भा०६ अंक ७-८ पृ० ३१ व इंऐ० २०-३५४ ।
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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