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________________ उत्तरी भारतके अन्य राजा व जैनधर्म। [१७५ भी पट्टावलियोंके उक्त कथनका समर्थन होता है। श्वेताम्बर जैनोंका लीलास्थल मुख्यतः गुजरात ही रहा है ! जिस समय ग्वालियरमें दिगम्बर जैन पट्ट था, उस समय सं० १२९६ मे रत्नकीर्ति नामक एक प्रसिद्ध जैनाचार्य थे । 'यह स्याद्वादविद्याके समुद्र थे, वालब्रह्म. चारी थे, तपसी थे, दयालु थे. उनके शिप्य नाना देशोमें फैले हुए थे।' उस समयके दिगंबर जैन संघमे उज्जैनका संघ प्रख्यात था। उस संघमें तब निम्नलिखित आचार्य हुये उज्जैन व वाराका संघ। थे।-(१) अनंतकीर्ति सन् ७०८ ई०, (२) धर्मनन्दि सन् ७२८ ई०, (३) विद्यानन्दि सन् ७५१ ई०, (४) रामचन्द्र ७८३ ई०, (५) रामकीर्ति ७९० ई०, (६) अभयचंद्र ८२१ ई०, (७) नरचन्द्र ८४० ई०, (८) नागचंद्र ८५० ई०, (९) हरिनन्दि ८८२ ई०, (१०) हरिचंद्र ८९१ ई०, (११) महीचन्द्र ९१७ ई०, (१२) माधचन्द्र ९३३ ई०, (१३) लक्ष्मीचंद्र ९६६ ई०, (१४) गुणकीर्ति ९७० ई०, (१५) गुणचन्द्र ९९१ ई०, (१६) लोकचंद्र २००९ ई०, (१७) श्रुतकीर्ति १०२२ ई०, (१८) भावचन्द्र १०३७ ई०, (१९) महीचन्द्र १०५८ ई० । उज्जैनके उपरान्त दिगम्बर गुनियोंका केन्द्र विन्ध्याचल पर्वतके निकट स्थित वारानगर नामक स्थान हुआ था। वारा प्राचीनकालसे ही जैनधर्मका किला था। आठवीं या नवीं शताब्दिमे वहां श्री पद्मनंदि मुनिने 'जम्बूद्वीपप्रजाप्ति की रचना की थी। इस ग्रन्थकी १-जैहि०, भा०६ अक ७-८ १० २६ । २-जैहि०, भा०६ अङ्क ५-८ पृ० ३०-३१। - -
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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