SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तरी भारतके अन्य राजा व जैनधर्म। [१७७ र्यका वाद एक श्वेतांवर आचार्यसे हुआ था। तेरहवीं शताब्दिमे अनन्तवीर्य नामक एक दिगंबराचार्य प्रसिद्ध नैयायिक और वादी थे। उन्होंने अगणित वादियोंको गतमद किया था। इसी समयके लगभग गुणकीर्ति नामक महामुनि विगद धर्म-प्रचारक थे। उन्हींके उपदेशसे पद्मनाम नामक कायस्थ कविने 'यशोधरचरित्र' की रचना की थी। झांसी जिलेका देवगढ़ नामक स्थान भी मध्यकालमें दिगंबर मुनियोंका केन्द्र था। वहां भी कई दिगंबरचार्य हुये थे, जिनके शिष्योंने अनेक धर्मकार्य किये थे। वि० सं० १२२३ मे मुनि देवनंदिके शिप्य मुनि रामचन्द्रजी राज्यमान्य थे। सन् १२९५ में आचार्य महासेन दक्षिणभारतसे दिल्ली आये थे और उन्होंने बादशाह अलाउद्दीनके दरबारमें ब्राह्मण पंडितोंसे वाद करके जैनधर्मकी अपूर्व प्रभावना की थी। ईसवी प्रथम शताब्दिके प्रारम्भमें श्वेताम्बर संप्रदायके अलग होजानेसे यद्यपि निर्ग्रन्थ वीतरागवृत्ति पर मुनि धर्म। संकटके बादल जरा हलके पड़ गये थे; किन्तु श्वेताम्बर जैनोंकी अभिवृद्धिके साथ वह फिरसे जोर पकड़ गये थे। दिगम्बर जैन संघमें भी निर्ग्रन्थवृत्तिमें अपवाद प्रारंभ हो गया; किन्तु भगवत् कुन्दकुन्द, जिनसेन, अमितगति इत्यादि जैनाचार्योंके समक्ष वह अधिक प्रभावशाली नहीं हो सका; यद्यपि काल महाराजकी कृपासे उसने जड़ अवश्य पकड ली। और उसके फलरूप द्राविड़ संघ, काष्ठासंघ आदिका प्रादुर्भाव १-एडिनेवा०, पृ० ४५॥२-पूर्व०, पृ० ८६ । ३-दिगम्बरत्व और दि० मुनि पृ० १५१ । ४-जैमि०, भा० १४ अंक ८ पृ० ७। ५-दानवीर माणिकचन्द्र पृ० ३५ । -
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy