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________________ ' १६६] संक्षिप्त जैन इतिहास । जैनधर्म मेवाडमे खूब फलाफूला है। मेवाडकी प्राचीन कीर्तियां इस बातकी साक्षी है। चितौडमे जैन कीर्तिस्तंभ एक अपूर्व जैन शिल्प है। उसके नीचे एक पापाण खंड परके सं० ९५२के लेखसे उस समय वहापर बहुतसे दिगवर जैनियोंका होना प्रगट है। जैन कीर्तिस्तंभको दिगंबर संप्रदायके बघेरवाल महाजन सा (साह) नामके पुत्र जीजाने वि० सं०की १४ वीं शताब्दिके उत्तरार्द्धमे बनवाया था। इस स्तंभके पास ही एक प्राचीन जैन मंदिर भी मौजूद है। चितौडमें गोमुखके निकट महाराणा रायमलके समयका बना हुआ एक और जैनमंदिर है, जिसकी मूर्ति दक्षिणसे लाई गई थी। उदयपुरमे विशेष मान्य और प्राचीन जैन स्थान केशरियाजी ऋषभदेवका है। यहाकी मूर्ति अत्यन्त प्राचीन है। दिगंबर जैनाचार्य श्री धर्मचन्द्रजीका सम्मान और विनय महाराणा हम्मीर किया करते थे। सं० १२९५मे रामपालदेवका राज्य था, तब गोहिलवंशीय उद्धरणके पुत्र राजदेवने, जो रामपालके आधीन था, करका बीसवां भाग नादलाईके जैनमंदिरको पूजाके वास्ते दिया था। (मप्राजैस्मा० पृ० १४७) नादालके पद्मप्रभके मंदिरमे सं० १२१५ के लेखसे प्रगट है कि राणा जगतसिहके मंत्री जयमल्लने वह मंदिर बनवाया था। वि० सं० १३३५ (१२७१ ई०)मे रावल समरसिंहकी माता जयतलदेवीने चितौड़मे श्याम पार्श्वनाथका मंदिर बनवाया १-मप्राजैस्मा०, पृ० १३४ । २-राइ०, भा० १ पृ० ३५२३५४ । ३-राई०, भा० १ पृ०३४६ । ४-'श्री धर्मचन्द्रोऽजनि तस्य' पट्टे हमीरभूपालसमचनीयः ।। जैहि०, भा० ६ अंक ७-८ पृ० २६ ।
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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