SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तरी भारतके अन्य राजा व जैनधर्म। [४६५ 'क्षत्रियों द्वारा उसको सन्मान न मिलना एक असंभव बात है। कर्नल - टॉड सा०ने जो राजपूतोंकी उत्पत्ति आबू पर्वतपर अमिकुण्डसे . . हुई लिखी है, उससे भी इन लोगोंका जैनधर्मसे बहु संपर्क प्रमाणित • है। टॉड सा० लिखते हैं कि 'पराक्रमकारी जैन लोगोंकी चढ़ाईसे . अपने धर्मकी रक्षा करनेको ब्राह्मणोंने अनिकुल उत्पन्न किया। परन्तु मुसलमानोंकी चढ़ाईके समय अग्निकुलके अधिकांश लोग जैन होगये।' अग्निकुलके सोलंकी, परमार आदि राजपूत वंश इस मुसलमानोंके आक्रमणके पहलेसे ही जैनधर्मको आश्रय देरहे थे, यह लिखा जाचुका 'है । आबूपर जहां अग्निकुण्ड जलाकर अग्निवंशकी स्थापना की गई थी, वहां आदिनाथ भगवानकी पाषाण पूर्ति वेदीपर विराजमान है।' , राजपूतानामें उदयपुरके राणाओंका वंश प्रसिद्ध है। जैन धर्मकी मान्यता इस वंशमें एक अतीव प्राचीन मेवाडके राणावंशमें कालसे प्रगट होती है। आज भी मेवाड़. जैनधर्म। राजवंशमें जैनधर्मको विशेष सम्मान प्राप्त है। __इस वंशकी उत्पत्ति उसी वंशसे हुई मानी जाती है; जिसमें प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेवका जन्म हुआ था।' राणाओंके आदिपुरुष गुहिल नामक क्षत्री ई० स० ५६८में हुये थे। कर्नल टॉड सा० कहते है कि गिल्हौत कुलके आदिपुरुष भी जैनधर्ममें दीक्षित थे । इसी कारण गिल्हौतकुलके राजा लोग अपने पितृपुरुषों के धर्मपर अनुराग करते रहे हैं। अतः प्रारंभसे ही राजाश्रय पाकर । १-टॉड, राजस्थान (वेङ्कटेश्वर प्रेस) मा० १ पृ० ५२-५७ । २-राई०, भा० १. पृ०.३६९ । ३-डॉरा०, भा० १ पृ०,७१५॥
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy