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________________ उत्तरी भारतके अन्य राजा व जैनधर्म। [१६७ था। इनके उपरान्त महाराणा भीमसिह, कुम्भ इत्यादिने जैनधर्मके लिये जो किया, वह हम तीसरे भागमे देखेंगे। राजपूतानामें उदयपुरके बाद मारवाडकी विशेष प्रमिद्धि है। राजपूतानावासी वैश्य ' मारवाड़ी ' नामसे. मारवाड़ी जैनधर्म। सर्वत्र प्रख्यात् है । सन् १२२६के लगभग मारवाडमें राठौर क्षत्रियों का अधिकार होगया था । राठौर अथवा राष्ट्रकूट वंशके पूर्वजोंमें जैनधर्मकी मर्यादा विशेष रही थी। मारवाड़के राठौरामें चक्रेश्वरी देवीकी विशेप मान्यता है; जो तीयङ्करकी गासन देवता है। मारवाड़ राठौर वंशके चौथे राजा राव रायपालजीके तेरह पुत्र थे, जिनमें ज्येष्ठ पुत्र कनकपाल वि०सं० १३०१ मे राज्याधिकारी हुये थे। शेप पुत्रोमे एक मोहनजी नामक भी थे। मोहनजीने अपना दूसरा विवाह एक श्रीश्रीमाल कन्यासे किया था, जिससे उनके सप्तसेन नामक पुत्र हुआ था । सप्तसेनने जैनधर्म स्वीकार कर लिया था और वह ओसवाल जैनियोंमे सम्मिलित होगया था। उसकी संतान आजकल के मुहणोत ओसवाल है। मारवाड़के राज्यशासनमें उनका हाथ रहा है। उनमें मंत्री और सेनापति कई हुये है। मुहणोतोंके अतिरिक्त जोधपुर राजमें भंडारी ओसवालोका भी हस्तक्षेप रहा है। भंडारी ओसवाल अपनी उत्पत्ति अजमेरके चौहान धरानेसे बताते है । इनके पितामह राव लक्षमण (लखमसी)ने अजमेरके घरानेसे अलग हो नाडौलमें अपना एक प्रथक १-राई०, भा० १ पृ० ३८१ । २-भाप्रारा०, भा० ३ पृ० ११८-१२५ । ३-सडिजै०, पृ० ३३-३४ व भाप्रारा०, भा० ३ पृ० १२७
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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