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________________ ३८] संक्षिप्त जैन इतिहास । उपरान्त वह जैनधर्मके दृढ़ अहानी हुये थे और दिगंबर मुनिके वेषमें सर्वत्र विचरे थे । श्वेताम्बर कथाकार उनकी राजधानी वीतभय नगरीको सिंधुसौवीर देशमें बतलाते हैं और कहते हैं कि वह १६ देशोंपर राज्य करते थे, जिनमें वीतभयादि ३६३ मुख्य नगर थे। संभवतः कच्छ देश भी इसमें संमिलित था। इसी कारण उनकी राजधानी कच्छ देशमें अवस्थित भी बताई गई है। उक्त कथामें प्रभावती के संसर्गसे राजा उदयनको जैनधर्मासक्त होते लिखा है। राजाने राज्य प्रासादमें एक सुंदर मंदिर बनवाया था और उसमें गोशीर्षचन्दनकी सुन्दर मूर्ति विराजमान की थी। कहते हैं कि एक गांधार देशवासी जैन व्यापारीकी कपासे मंत्र पाकर उस मूर्तिकी पूजा करके एक दासी पुत्री स्वर्ण देहकी हुई थी। उसने उज्जैनीके राजा चन्द्रप्रद्योतनसे जाकर विवाह कर लिया। और उस गोशीर्ष चन्दनकी मूर्तिको भी वह अपने साथ लेगई। उदायन्ने प्रद्योतनसे लड़ाई ठान दी और उसे गिरफ्तार कर लिया; किन्तु मार्गमें पर्युषण पर्वके अवसरपर उसे मुक्त कर दिया था। प्रद्योतनने उस समय श्रावक के व्रत ग्रहण किये और वह उज्जनी वायस चला गया था। उदायन् भगवानकी मूर्ति लेकर वीतभय नगरको पहुंच गए। यह नगर समुद्र तटपर था और यहांसे खूब व्यापार अन्य देशोंसे हुआ करता था । उक्त श्वेताम्बर कथाका निन्न अंश कल्पित प्रतीत होता है। संभव है कि वत्सराज उदायनका जो युद्ध 'प्रद्योतनसे हुआ था, उसीको लक्ष्यकर यह अंश रच दिया गया हो। मगाड़ी इस कथाम है कि उदार्यनकी भावना थी कि भगवान
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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