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________________ लिच्छिवि आदि गणराज्य। [३७ महावीर धर्मप्रचार करते हुये कौशाम्बी पहुंचे थे, उस समय इस रामाने उनका धर्मोपदेश अच्छे भावों और बड़े ध्यानसे सुना था ! भगवानकी वन्दना और उपासना बड़ी विनयसे की थी। और अन्तमें वह भगवान के संघ समिलित होगया था। पर पहले मृगावतीकी बहिन चन्दनाके यहां जो कौशाम्बीमें एक सेठके यहां पुत्रीके रुपो रही थी. भगवानका आहार हआ था। कौशाम्बी प्राचीन बालसे जैनों का मुख्य केन्द्र रहा है और मान भी उसकी मान्यता भनोंके निकट विशेष है। यहॉपर प्राचीन जन कीर्तियां विशेष मिलती हैं। कनिंघम साहबने वत्सरान उदयनको यहां ई० पूर्व ५७० से ५४० तक राज्य करते लिखा है । वह 'विदेहपुत्र' अपनी माताकी अपेक्षा कहलाते थे। राजा चेटककी तीसरी कन्या मुप्रभा दशाण (दशासन) देशमें राजा दशरथ और हेरकच्छपुर (कमैठपुर) के स्वामी सूर्यवंशी राजा परम सम्यकी दशरथसे रिवादी गई थी। यह दशार्ण देश राजा उदयन् । मंदसोरके निकट प्राचीन मत्सदेशके दक्षिणम अनुमान किया गया है । यह राना भी जैन था। चौथी पुत्री प्रभावती कच्छदेशके सुरक नगरके राना उदयनकी पट्टरानी हुई थी। यह राजा उदयन अपने सम्यक्तबके लिये जैनशास्त्रोंमें बहुत प्रसिद्ध हैं । किन्हीं शास्त्रोंमें इनकी राजधानीका नाम वीतशोका लिखा हुभा मिलता है। श्वे. माम्नायकी 'उत्तराध्ययन सूत्र' सम्बन्धी कथाओंमें इन्हें पहले वैदिक धर्म भुक्त बतलाया है। - १-३० पु० पृ० ६३६ व मम० पृ. १०८ । २-30 पु० पृ. १३६ । ३-एमिक्ष दा० पृ. ७२ । ४-30 पु० पृ० ६३६ ।
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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