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________________ लिच्छिवि आदि गणराज्य। [३९ महावीरजीका शुभागमन वीतशोका नगरीमें होनावे । कदाचित समागम ही ऐसा लगा कि भगवानका समोशरण वहांके 'मृगवन' नामक उद्यानमें भाकर विराजमान हुमा । उदायन्ने बड़ी भक्तिसे भगवानकी वंदना की और अन्त में वह अपने भानजे वेशीको राज्य सौंपकर नग्न श्रमण होगये। दिगम्बर जैनशास्त्रोंमें. यह राजा अपने 'निर्विचिकित्सा अंग' का पालन करने के लिये प्रसिद्ध हैं। यह बड़े दानी और विचारशील राजा थे। सारी प्रजाका उनपर बहुत प्रेम था। दिगम्बर मान्यता के अनुसार उनने अपने पुत्रको राज्यसिंहासन पर बैठाया था और स्वयं वीर भगवानके समोशरणमें जाकर मुनि होगए थे। अन्तमें घातिया कर्माका नाशकर वह मोक्ष लक्ष्मीके वल्लभ बने थे। रानी प्रभावती मिनदीक्षा ग्रहण करके समाधिमरण प्राप्त करके ब्रह्मस्वर्गमे देव हुई थी। रामा चेटककी अवशेष तीन कन्यायोंमेंसे चेलनीका विवाह .. मगधदेशके राजा श्रेणिक विम्बसारसे हुमा चेलिनी और ज्येष्ठा। 'था, यह पहले लिखा जा चुका है । चेलनोकी बहिन ज्येष्टाका भी प्रेम मगधनरेश पर थाः किंतु उसका मनोरथ सिद्ध नहीं हो सका था। गांधार देशस्थ महीपुरके राना सात्यकने उसके साथ विवाह करना चाहा था; किंतु राजा चेटकने यह सम्बंध स्वीकार नहीं किया था और उसे रणक्षेत्रमें परास्त करके भगा दिया था। सात्यक जैन संघमें जाकर दिगम्बर जैन मुनि होगया था और कालांतरमें ज्येष्ठाने भी अपनी मामी यशस्वती - १-हिटे० पृ० १८-११६ । २-आक०, भा० १ पृ. ८८ । ३-उ० पु०, पृ. ६३६ ।
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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