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________________ मौर्य-साम्राज्य। [२१९ नियों की पराधीनतासे मुक्त होता जानकर उसका पूरा साथ दिया था और वह उनकी सहायतासे मगधका राजा बनगया था। यह चंद्रगुप्त कौन था ? इस प्रश्नका उत्तर खोजने में हमारा ध्यान सर्व प्रथम मुद्राराक्षस नाटकके टीका. चन्द्रगुप्त कौन था ? कारके कथनपर जाता है। उसने 'वृपल' शब्दके आधारपर अपनी टीमें लिखा है कि 'नन्दवंशके अंतिम रानाकी वृपल (शद्र) जातिको मुग नामक रानीसे चन्द्रगुप्त उत्पन्न हुमा और अपनी माताके नामसे मौर्य कहलाया" बस, इसको पढ़कर ईसवी द्वितीय शताब्दिके यूनानी लेखकों एवं अन्य विद्वा. नोंने मान लिया कि चन्द्रगुप्त मुरा नामकी शूद्रा स्त्रीकी कुंखसे जन्मा था, इसलिये उसका नाम मौर्य पड़ा। किन्तु इस मान्यतामें तथ्य तनिक भी नहीं है । संस्कृत व्याकरण के अनुसार मुराका पुत्र 'मोरय' कहलायगा, न कि मौर्य ! चाणक्यने जरूर चन्द्रगुप्त के प्रति सम्बोधनमें 'वृप' शब्दका प्रयोग किया है किन्तु उसका अर्थ शुद्ध न होकर मगषमा राना होना उचित है जैसे कि कोपकार बतलाते हैं। अशोकके लिये 'देवानां प्रिय' सम्बोधन बहु प्रयुक्त हुआ है किन्तु उसको साधारण (मर्यात मूर्ख) अर्थमें कोई ग्रहण नहीं करता। 1-'मल्लदो नन्दनामानः केचिदान्महीभुजः ॥ २३॥ सायसिनिनामासीतपु विख्यातपौरुपः... ॥ २४॥ राशिः पली सुनन्दासोज्ज्येष्ठान्या वृपलात्मना । मुराख्या सा प्रिया गर्नुः शीललावण्यधपदा ॥२५॥ मुरा प्रस्तं तनयं मोर्याख्यं गुणवतर...॥ ३१॥ २-11६० मा १ पृ. ५९ व अघ. पृ० ६-७ । -हेमचन्द्राचार्यका हेमकोप देखो। - - - - -
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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