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________________ २१०] संक्षिप्त जैन इतिहास । इसी प्रकार वृषलका साधारण अर्थ ग्रहण करना अनुचित है। फिर यह असंभव है कि चाणक्य के समान समझदार व्यक्ति, अपने 'उस कपाभाजनके प्रति ऐसे क्षुद्र शब्दका प्रयोग कर उसे लज्जित करे, जो एक बड़े साम्राज्यका योग्य शासन था और जिसकी भ्रकुटि 'जरा टेढ़ी होनेपर किसीको अपने प्राण बचाना दुर्भर होजाता था। फिर चाणक्य तो स्वयं लिखता है कि दल रानाको भी न कछ समझना भूल है। असल बात यह है कि चाणक्य 'वृषल' शब्दका व्यवहार मादर रूपमें-मगधके राजाके अर्थ में-इसलिये करता था कि इससे उसके उस प्रयत्नका महत्व प्रगट होता था जो उसने चन्द्रगुप्तको मगधका राजा बनाने में किया था और इसकी स्मृति उसके आनन्दका कारण होना प्राकृत ठीक है । मुद्राराक्षसके ब्राह्मण टीकाकारने साम्प्रदायिक द्वेषवश चन्द्रगुप्तको शूदनात लिख मारा है वरन् स्वयं हिन्दू पुराणोंमें चंद्रगुप्तके शूद्र होनेका कोई पता नहीं चरता है। ___ 'विष्णुपुराण' में उनको नन्देन्दु अर्थात् 'नंद-चंद्र' (गुप्त), भविष्यपुराणमें 'मौर्य-नंद' और बौद्धोंके 'दिव्यावदान' में केवल 'नन्द लिखा है। इन उल्लेखोंसे चंद्रगुप्तका कुछ संबंध नंदवंशसे प्रगट होता है । कोई विद्वान् ‘मुद्राराक्षस' से भी यह संबंध प्रगट होता लिखते हैं; किन्तु इन उल्लेखोंसे भी चन्द्रगुप्तका शूद्रानात १-'दुर्वलोऽपि राजानावमन्तव्यः नास्त्यग्ने दौर्बल्यम् ।' २-अधः पृ० ६ ५.हिडाव० परि० पृ० ७१...और राइ• भा० १ पृ० ६०-६१ भाइ० पृ. ६२ । ३-जविओसो० भा० . १ पृ. ११६ फुटनोट । ४-हिद्राव०, भूमिका पृ०. १.१-१९ व अध: पृ९, ५ ।
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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