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________________ ५-उत्तम सत्य कठिन वचन पति बोल, परनिदा पर भूलना। सोच नबाहर खोल, सनवादी मग में मुखी ।। जब भागमा रगद पनि भावों को प्राप्मा से भिम समझता है और मामा का भी जाना है नब बा अपने मत्यांश को महा मक्षिन मने की नंगा करना है। इसीलिये न तो कीमिया गया। तीन अमाय बचन बोलकर या दमों की निन्दा वग: का अप. प्रात्मा का या पर को कर देने को कचा कर है। क्योंकि इमप्रकार के मियाचरण में उसका मग विज्ञान लि. नीहान पाना । ६-उत्तम मंयम काय हो पनिपाल, पचन्दा मन पम कगं । मधम रतन मभाल, विषय चार पर फिग्न । तिम बहार या भाचार में अपन की या पर प्राणी को कप पर ।। पचयामा क्रिया में मन और इन्दिनना मयम धम । पचन्द्रियों के विपयों में मन ... मानना इन्द्रिय मयम है। पांच लायर नन्न । या क.' • If .ना प्राण मयम है। विषय पनि क मा श्री. 4 पा-कोच, मान, माया, मोभ, मद, मत्सव्यं यं मा के यार। कयाकि इनक, मयोग से प्रारमा यहकने लगता है. नः इनका निग्रह करना ही मंयम है।
SR No.010470
Book TitleSankshipta Jain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaiya Bhagwandas
PublisherBhaiya Bhagwandas
Publication Year
Total Pages69
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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