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________________ जैन दर्शन वैदिक दर्शन. बौद्ध दर्शन की तरह हो जैन-दर्शन भी काफी समनपूर्ण स्थिति पर है। जैन-माहित्य में ये पागम के नाम से प्रसिद्ध है। उनमें आध्यात्मिक विकाम का मार्ग बहुत ही सुव्यस्थित रूप से प्राप्त होता है। यह जहर है कि उनमें उस प्रकार के यात्मिक उन्नति के मार्ग के नौदह विभाग करने में आए हैं। उन्हें गण म्यान के नाम से मम्बोधन करने में पाता है। गुण स्थान आत्मा को माम्य नवचेतना, वीर्य, चरित्र आदि शनियों को गुण नाम मे सम्बोधन करने में आता है और उन शनियों की नाग्नम्यावस्था को स्थान कहने में आता है। हम जिसप्रकार मूर्य के प्रकाश को बादलों में छिपा हुआ देखते हैं. ठीक उमी प्रकार आत्मा के स्वाभाविक गुण भी कई प्रकार के आवरणों में छिपकर मांमारिक दशा में प्रावृत्त रहते है। हमप्रकार के आवरणों को शनि ज्यों ही ज्यों नाग होने लगती है । अर्थात् जिमप्रकार बादल के फटने या हटने से मूर्य का प्रकाश अपना प्रभाव प्रकट करने लग जाना है, ठीक उमी प्रकार इन प्रावरणों के क्षय हाने से श्रामा के स्वाभाविक गुण भी प्रकाशमान होने लग जाते हैं।
SR No.010470
Book TitleSankshipta Jain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaiya Bhagwandas
PublisherBhaiya Bhagwandas
Publication Year
Total Pages69
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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