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________________ बिलामिना आदि का बालवाला मर्वत्र देखने में आता है। यही वाम कारण है कि हमें प्रत्येक समाज तथा देश में विलासमन्दिरों में मनुष्य जानि का अधःपतन देखने को मिलता है। यह निर्विवाद है कि मनुष्य जानि की इन कमजोरियों को घर करने के लिय चाहे लाम्बो प्रयत्न क्यों न किए जावें, पर वे कदापि दूर नहीं की जा सकती। फिर भी इतना नो जमा ही हो सकता है कि इन मितिों के प्रचार करने से इसप्रकार को कमजोरियों में कुछ कमी जरूर आ सकती है और बर्षग्ना के विरुद्ध सभ्यता की मात्रा में कुछ वृद्धि भी हो मकती है। इन सिद्धान्तों का जितना ही अधिक प्रचार मनुष्य समाज में होता जायगा, उतनी ही अधिक शांति की वृद्धि भी मनुष्यममाज में होगी। इस दृष्टि से यदि म्बुली आंग्वा तथा खुने हृदय मे विचार किया जाय. नो यह स्वीकार ही करना पड़ेगा कि जैन धर्म का प्रभाव सारे संसार पर ममान गति से पड़ता है। आत्मिक तथा प्राध्यामिक उद्धार के पनि भी संसार के अन्य धर्मा के मुकाबिले में जैनधर्म को क'को उन्ननपूण मानना नथा कहना ही पड़ेगा। महात्मा बुद्ध मरीब पहुँचे हुए महान पुरुष नक ने जैन धर्मावलम्बियों की तपस्या की भूरि-भूरि प्रशंशा को है। इसके लिये विशेष जानकारी प्राप्त करने के लिये 'मझिम निकाय' नामक बोट प्रन्थ का अवलोकन तथा मनन करन को आवश्यकता है। इसपकार यह निर्विवाद है कि यदि जैन धमावलम्बी गण अपने धर्म के प्रचार के पति विशेष ध्यान देने की कृपा करें, तो जैन-धम को विश्व-धर्म का उच्च स्थान अवश्य पान हो सकता है।
SR No.010470
Book TitleSankshipta Jain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaiya Bhagwandas
PublisherBhaiya Bhagwandas
Publication Year
Total Pages69
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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