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________________ सम्यक्त्व विमर्श कोई मतभेद नही है। प्रश्न-जिस प्रकार निर्मल एवं शीतल जल मे बादाम, पिस्ता, दूध और मिश्री आदि मिलाकर अधिक हितकारी बनाया जा सकता है, उसी प्रकार धर्म को भी युगानुसारी मिश्रण से युक्त करके सभी मनुष्यो के लिए उपयोगी क्यो नही बनाया जा सकता ? उत्तर-बनाया जा सकता है और सदा से बनाते आये हैं । संवर तत्त्व मे निर्जरा की मात्रा बढाते रहने से वह धर्म अधिक हितकारी बन सकता है। पानी के गुणो को सुरक्षित रखते हुए उसमे गुण उत्पन्न करने वाले तत्त्व मिलाने से गुण वृद्धि होती है, उसी प्रकार सवर धर्म को सुरक्षित रखते हुए निर्जरा का उत्तम मिश्रण किया जाय, तो वह अधिक लाभ दायक होला है। भूतकाल मे अनेकानेक भव्यात्माओ ने, गुणरत्नसंवत्सरादि और रत्नावली आदि द्रव्य भाव तप मिलाकर आत्मा की विशेष शुद्धि की है । ऐसा होना तो विशेष लाभ दायक है, फिर भी इसे परिवर्तन नही कहते। क्योकि सवर के साथ निर्जरा भी धर्म का ही तत्त्व है। जिस साधना मे संवर का तत्त्व कायम रखकर निर्जरा का जितना अधिक मिश्रण हो वह उतनी अधिक लाभकारी होती है । इसमें कुछ भी परिवर्तन नही होता। यह तो जैनधर्म का सदा से चला आ रहा स्वरूप ही है। , परिवर्तन तो तब कहा जाय कि जिसमे पाश्रव तत्त्व को भी धर्म का रूप दिया जाय । जहाँ पाश्रव और बध की
SR No.010468
Book TitleSamyaktva Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1966
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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