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________________ १९६ सम्यक्त्व विमर्श की, भयभीत करने के लिए काले रंग की, तथा कर्म-निर्जरा के लिए श्वेत वर्ण की माला से जाप करना चाहिए।" (योगशास्त्र ८-३१) "पोद्गलिक सुख की प्राप्ति के लिए ॐकार युक्त नमस्कार मन्त्र का जाप करना चाहिए।" (८-७१) __ अनेक प्रकार के मन्त्र, स्तुति-स्तोत्रादि का निर्माण और प्रचार इसी उद्देश्य से हुग्रा कि जिससे साधारण जनता, जैनत्व से दूर नही चली जाय । उसकी इच्छा पूर्ति के साधन, जैनधर्म मे ही उपलब्ध कर दिये गये । इस मिथ्यात्व का सेवन करते हुए भी यदि जनता, जैन-धर्म के सम्पर्क में रहेगी, तो कभी न कभी सच्चा सम्यग्दृष्टि बनने का प्रसग भी पा सकेगा । जैनत्व से सर्वथा विमुख होने की अपेक्षा यह अच्छा भी है, किंतु स्थिति बिगडती गई, मिथ्यात्व बढता गया और सम्यक्त्व लुप्त होता गया। अन्धानुकरण से यह लोकोत्तर मिथ्यात्व, प्राभिग्रहिक तथा कही कही आभिनिवेशिक मिथ्यात्व का कारण बन गया । कथित धार्मिक प्रसगो पर लोकोत्तर देवो के साथ लौकिक देव भी, लौकिक सामग्री तथा लौकिक विधि से पूजे जाने लगे। इस प्रकार लोकोत्तर देव विषयक मिथ्यात्व का प्रसार बहुत हुप्रा और हो रहा है। अपनी ही वृद्धि और प्रत्यक्ष को महत्व देने वाला 'सुधाक' नामधारी वर्ग, तीर्थंकर भगवतो के अतिशय, उनकी सर्वज्ञसर्वदर्शिता और वीतरागता से भी इनकार कर रहा है। कोई उन्हे स्त्रियो और अछतो का उद्धार करने के लिए विद्रोह करने
SR No.010468
Book TitleSamyaktva Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1966
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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