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________________ लोकोत्तर गुरुगत मिथ्यात्व........ १६७.... लोकोत्तर गुरुगत मिथ्यात्व वाला बता रहा है, तो कोई जनसेवक तथा कोई कृषि, युद्ध आदि की हिंसा मे भी अहिंसा पालन करने के सिद्धात वाले बता रहा है । यो अनेक प्रकार से लोकोत्तर देवगत मिथ्यात्व का सेवन हो रहा है। लोकोत्तर गुरुगत मिथ्यात्व जो प्रारभी परिग्रही हैं, जिनकी प्रवृत्तियां सावध हैं, जो पाँच महाव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ति एवं निग्रंथाचार के पालक नही है, उन लौकिक-गुरुओ तथा लौकिक संस्था के नेताओ को धर्म-गुरु मानना, इसी प्रकार लोकोत्तर वेशधारी शिथिलाचारियो, पासत्थो, कुशीलियो, स्वच्छन्दाचारियो, निग्रंथधर्म की मर्यादा के बाहर जाकर सावध प्रचार करने वालो, विपरीत प्राचारवालो एवं दुराचारियो को लोकोत्तर-गुरु मानकर वन्दनादि करना भी लोकोत्तर गरु विषयक मिथ्यात्व है। जो श्रमणोपासक कहाकर, निग्रंथ साधुओ को मोक्षमार्ग से हटाकर, संसार-मार्ग की ओर खिंचते है, उनसे सावध प्रचार करवाते है, लोक-नेताओ के सम्पर्क मे लाकर उन्हे भी लौकिक बनाने की चेष्ठा करते है उन्हे जन-सेवक कहते हैं, उन्हे दिये जाने वाले आहारादि का भौतिक बदला चाहते हैं और उनके द्वारा अपनी प्रशसा, संमानादि की इच्छा करते हैं, यह सब लोकोत्तर गुरुगत मिथ्यात्व है। लोकोत्तर धर्मगत मिथ्यात्व जैनधर्म, वास्तव मे मुक्ति का मार्ग है। परम-निवृत्ति .
SR No.010468
Book TitleSamyaktva Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1966
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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